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जगद्गुरु श्री शिवा-रात्रीश्वर अस्पताल के नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

मैसूर, कर्नाटक : 23.09.2013



मैं, जगद्गुरु श्री शिवा-रात्रीश्वर महाविद्यापीठ के नए अस्पताल के भवन के उद्घाटन के लिए आज यहां उपस्थित होना अपना सौभाग्य मानता हूं। जगद्गुरु श्री शिवा-रात्रीश्वर महाविद्यापीठ की स्थापना 1954 में एक हजार वर्ष प्राचीन पूजनीय पीठ सुत्तुर के जगद्गुरु वीर सिंहासन पीठ के डॉ. श्री शिवरात्रि राजेंद्र महास्वामी जी द्वारा की गई थी।

2. प्राचीन समय से ही धर्मगुरु यह मानते आए हैं कि लोगों के आध्यात्मिक कल्याण को उनके सांसारिक हितों से अलग नहीं किया जा सकता। कुछ ही संगठन इस विचार को अमल में लाए हैं। जगद्गुरु श्री शिवा-रात्रीश्वर महाविद्यापीठ और सुत्तुर मठ इसके उल्लेखनीय उदाहरण हैं। उन्होंने मानवता की नि:स्वार्थ सेवा की उच्च परंपराएं स्थापित की हैं। उन्होंने सामाजिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए निरंतर संघर्ष किया है। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आवास, भोजन, कौशल प्रशिक्षण, ग्रामीण विकास और सामाजिक सुधार में अनेक उल्लेखनीय पहलें की हैं। मैं, इस क्षेत्र में वहनीय और उत्तम स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लक्ष्य से बनाए गए अस्पताल के नए भवन के उद्घाटन के लिए जगद्गुरु श्री शिवा-रात्रीश्वर महाविद्यापीठ को बधाई देता हूं।

देवियो और सज्जनो,

3. कर्नाटक व्यापक जन-स्वास्थ्य सेवाओं में अग्रणी है। देश में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के बारे में सोचने से पहले ही इस राज्य ने अनेक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल यूनिट तथा उपचारी रोग निरोधी और पुनर्वास स्वास्थ्य देखभाल युक्त एक सुपुर्दगी प्रणाली की स्थापना कर दी थी। इन प्रयासों ने इस राज्य के नागरिकों की स्वास्थ्य की स्थिति, संवर्धित उत्पादकता और जीवन स्तर को बढ़ाया है। जगद्गुरु श्री शिवा-रात्रीश्वर महाविद्यापीठ के मानवतापूर्ण कार्यों ने काफी हद तक इस सफलता में योगदान दिया है।

4. स्वास्थ्य किसी व्यक्ति की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। यह किसी भी सामाजिक स्तर से हटकर एक कीमती सम्पत्ति है। महात्मा गांधी का कहना था, ‘‘सोने और चांदी के टुकड़े नहीं बल्कि स्वास्थ्य ही असली धन है।’’ देश के लोगों का स्वास्थ्य ही विकास का स्तर निर्धारित करता है। एक स्वस्थ आबादी शिक्षा, ज्ञान और रोजगार प्राप्त करने में अधिक सक्षम होती है।

देवियो और सज्जनो,

5. एक मजबूत स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली उपलब्धता, गुणवत्ता और वहनीयता पर निर्भर करती है। स्वास्थ्य सुविधाओं को ग्रामीण जनता के द्वार पर ले जाने के लिए 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, उपकेन्द्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के नेटवर्क के जरिए शुरू किया गया था। इस मिशन के तहत बेहतर ढांचागत सुविधाओं, प्रशिक्षित कार्मिक तथा प्रभावी औषधि और आधुनिक उपकरणों से सेवा उपलब्धता बढ़ी है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को मिलाकर एक नया राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन इस वर्ष शुरू किया गया है।

6. भरपूर प्रयास करने के बावजूद, ऐसे कई क्षेत्र हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। लोगों को विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए और ज्यादा प्रयास की आवश्यकता है। भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवा, पहुंच के मामले में अभी पीछे है। स्वास्थ्य सेवा उपलब्धता की गुणवत्ता में भी कमी पाई जाती है। बहुत से लोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निजी क्षेत्र पर निर्भर हैं। वे अक्सर खर्चीले चिकित्सीय इलाज का भार वहन करने मे नाकाम हो जाते हैं और गरीबी के गर्त में चले जाते हैं। लोगों को विशेषज्ञ चिकित्सीय उपचार प्राप्त करने के लिए साधनों की जरूरत है और उच्च लागत के कारण उन्हें इससे वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

7. उत्तम चिकित्सीय उपचार तक पहुंच बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य देखभाल में प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की जरूरत है। यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि दूर चिकित्सा परियोजना ने उपग्रह प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए सुदूर स्वास्थ्य केंद्रों को शहरी क्षेत्रों के सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों के साथ जोड़ दिया है। इससे जरूरतमंद और अभावग्रस्त लोगों तक पहुंचने के लिए कुशल स्वास्थ्य देखभाल परामर्श में मदद मिली है। प्रौद्योगिकी के अन्य नवान्वेषी प्रयोग खोजे जाने चाहिए। अधिकांश रोगों के प्रभावी और सस्ते इलाज ढूंढ़ने होंगे। वर्तमान में आयात किए जाने वाले चिकित्सीय प्रक्रियाओं के उन्नत उपकरण को स्वदेशी रूप से निर्मित किया जाना चाहिए। नवान्वेषण के लिए अनुसंधान केंद्रों और चिकित्कीय कॉलेजों को प्रोत्साहित करना होगा। हमारे देश में बड़ी संख्या में उच्च दक्षता वाले डॉक्टरों के लिए चिकित्सीय शिक्षा को मजबूत बनाना होगा। हमारे डॉक्टरों को विशेषज्ञता के क्षेत्रों में नवीनतम प्रगति से परिचित करवाना होगा।

8. अध्ययनों से पता चलता है कि निवारक जन-स्वास्थ्य में किए जाने वाले निवेश गरीबों तथा प्रगति दोनों के अनुकूल होते हैं। हमारी स्वास्थ्य सुविधा कार्यनीति में चिकित्सा सुविधा तथा हस्तक्षेप दोनों ही से आगे कार्य करना होगा। जीवन शैली संबंधी बढ़ती बीमारियों के कारण निवारक स्वास्थ्य सेवा को अधिक महत्त्व देना होगा। हमारी स्वास्थ्य प्रणाली को लोगों का उपचार करने तथा चिकित्सा स्थितियों के निवारण के लिए मार्गदर्शन भी देना होगा। एक ‘स्वस्थ भारत’ संभव है। जिसके लिए बीमारियों की रोकथाम, शीघ्र पहचान तथा उपचार को प्रोत्साहन देना होगा। इसके लिए स्वस्थ रहन-सहन को बढ़ावा देना होगा। स्वस्थ मन और स्वस्थ शरीर के लिए संतुलित भोजन, शारीरिक श्रम, जीवन-शैली प्रबंध तथा पर्यावरण की सुरक्षा को बढ़ावा देना होगा। स्वस्थ व्यवहार तथा आदतों को शुरू करने के लिए व्यक्तियों तथा समुदायों, दोनों में, बदलाव के लिए प्रयास करने होंगे।

देवियो और सज्जनो,

9. स्वास्थ्य क्षेत्र में हमारे व्यय को बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत का स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च सकल घरेलू उत्पाद का 1.2 प्रतिशत है। यह अमरीका, यू.के., आस्ट्रेलिया, नार्वे और ब्राजील जैसे देशों के 4 प्रतिशत से ज्यादा के स्तर से बहुत कम है। आज कुछ लोगों द्वारा यह प्रश्न उठाया जाता है कि क्या भारत सभी को स्वास्थ्य सुविधाएं, मौलिक शिक्षा, खाद्य सुरक्षा और रोजगार गारंटी सुनिश्चित करने पर निवेश का भार वहन कर सकता है। मैं हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अधिवक्ता, शिक्षाविद् और पूर्व अध्यक्ष के कथन द्वारा इसका उत्तर देता हूं, ‘‘यदि आप सोचते हैं कि शिक्षा खर्चीली है तो अज्ञानता के बारे में सोचें।’’ अगर हम चाहते हैं कि हमारा देश प्रगति करे, दुनिया के उन्नत देशों में गिना जाए तो हमें अपनी सौम्य शक्ति बढ़ानी होगी। हम अपनी आबादी में पर्याप्त निवेश करने पर ही आगे का मार्ग तय कर सकते हैं। हमें स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करके, उत्तम शिक्षा प्रदान करके और एक बेहतर जीवन स्तर सुनिश्चित करके अपने लोगों की क्षमता को बढ़ाना होगा। सही प्रश्न यह पूछना होगा कि क्या भारत जीवन जीने के इन मूलभूत अवयवों में निवेश न करने का जोखिम उठा सकता है। यदि हम शांति, स्थिरता और समृद्धि चाहते हैं तो इसका उत्तर ना में है। चूंकि जन संसाधनों पर बहुत से तात्कालिक उपयोगों का दबाव रहता है, इसलिए निजी स्वास्थ्य सुविधा प्रदाताओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा उत्तम स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करने के लिए इन्हें उपयुक्त रूप से शामिल किया जाना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

10. आज एक गंभीर विचार जो बहुत से लोगों के ध्यान को आकर्षित करता है, वह है, हमारे देश को लाभ-प्रेरित, पूर्णत: वाणिज्यिक प्रणाली को अपनाना चाहिए अथवा हमारे सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुकूल स्वास्थ्य प्रणाली को अपनाना चाहिए। आपके जैसे चिकित्सा संस्थानों को हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र का मार्गदर्शन करने में केन्द्रीय भूमिका है। आपका कर्तव्य युवा डॉक्टरों और स्वास्थ्य पेशेवरों के मन में देशभक्ति और सामाजिक दायित्व की गहरी भावना पैदा करना है। ऐसे डॉक्टर भी हैं जो अधिक विशेषज्ञता हासिल करने और अपने अनुभव के दायरे को बढ़ाने के लिए विदेश के उत्कृष्ट संस्थानों में उच्च अध्ययन करना चाहते हैं। उन्हें प्रोत्साहन की जरूरत है। इसी प्रकार, उन्हें याद रखना होगा कि राष्ट्र ने उनकी शिक्षा में निवेश किया है। वे जहां भी जाएं, उन्हें अपनी मातृभूमि के साथ पवित्र बंधन बनाए रखें।

11. चिकित्सा समुदाय को उस सद्भावना और विश्वास का सम्मान करना चाहिए जो लोगों ने उनमें व्यक्त किया है। चिकित्सकों को हमेशा इस नेक पेशे में प्रवेश करते समय ली गई हिप्पोक्रेटिक शपथ के सच्चे अर्थ को याद रखना चाहिए। मुझे पक्का विश्वास है कि जगद्गुरु श्री शिवा-रात्रीश्वर महाविद्यापीठ जैसे नेक संगठन अपने डॉक्टरों और विद्यार्थियों में नैतिक व्यवहार के विचार पैदा करते रहेंगे। मैं एक बार पुन: सुत्तुर मठ और जगद्गुरु श्री शिवा-रात्रीश्वर महाविद्यापीठ को उनके नि:स्वार्थ प्रयासों के लिए बधाई देता हूं। मैं उनकी सफलता की कामना करता हूं।

धन्यवाद,

जय हिंद!