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पांडिचेरी विश्वविद्यालय के तेईसवें दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

पुदुच्चेरी : 25.09.2013



मुझे आज पांडिचेरी विश्वविद्यालय के तेईसवें दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर तथा इस शुभ अवसर के लिए आज यहां आए हुए विद्यार्थियों के उल्लास और रोमांच को देखकर प्रसन्नता हुई है।

2. मुझे इस अवसर का उपयोग पुदुच्चेरी आने के लिए करने पर भी खुशी हो रही है। यह एक खूबसूरत शहर है जो एकइम इसकी भव्य हवेलियों, सुंदर मार्गों और शांत सैरगाहों के प्रति प्रशंसा का भाव जगा देता है। यह महान तमिल कवि भरतीदासन की जन्मभूमि है। तमिल के एक अन्य विख्यात कवि सुब्रमण्य भारतीयार ने अपनी कुछ यादगार कविताएं लिखने के लिए इस स्थान को चुना। श्री अरविंद यहां एक पूरे विश्व में श्रद्धा के पात्र आश्रम की स्थापना करने के लिए आए।

मित्रो,

3. पांडिचेरी विश्वविद्यालय की स्थापना 1985 में हुई थी। इस विश्वविद्यालय के ब्योरे और कुलपति की रिपोर्ट पढ़ते हुए मैं इस बात की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाया कि वर्षों के दौरान किस शानदार तरीके से उच्च शिक्षा की इस पीठ ने विकास किया है। इसके तीन परिसरों, पंद्रह स्कूलों, सैंतीस विभागों और दस केंद्रों में चार सौ शिक्षक, 6100 विद्यार्थियों को, 175 स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों तथा शोध विधाओं में पढ़ाते हैं। इसके पास 87 संबद्ध कॉलेज भी हैं जिसमें पैंतालीस हजार से अधिक विद्यार्थी हैं। यह वास्तव में दक्षिणी क्षेत्र के एक शैक्षिक केंद्र के रूप में उभरा है। विश्वविद्यालय की अत्याधुनिक सुविधाओं ने विद्यार्थी अनुकूल और परिणामोन्मुख शैक्षिक वातावरण का मार्ग प्रशस्त किया है। इस विश्वविद्यालय ने इस क्षेत्र में एक शिक्षा आधारित विकास पर अमल किया है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इसने गांवों को गोद लिया है और स्थानीय समुदायों तथा निकायों के साथ आदान-प्रदान कार्यक्रम शुरू किए हैं।

मित्रो,

4. दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय के शैक्षिक कार्यक्रम में एक ऐतिहासिक दिन होता है। यह शिक्षण के एक दौर के पूर्ण होने का अवसर होता है। मैं आज अपनी डिग्री और डिप्लोमा प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं। स्नातक होना एक ऐसी नई यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है जिसमें यहां प्राप्त ज्ञान और कौशल की परीक्षा होगी। ऐसा समय भी आएगा जब आप आसानी से सफलता हासिल कर लेंगे, वहीं कभी आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। कष्ट की घड़ियां आपके सच्चे साहस की परीक्षा लेंगी। आपकी कठोर मेहनत, अनुशासन, प्रतिबद्धता और आपका संकल्प कठिन रास्तों को पार करने में मदद करेंगे। जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहें। खेद के लिए कोई गुंजायश न छोड़ें।

5. विद्यार्थी के जीवन में विश्वविद्यालय की भूमिका का डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सार्थक ढंग से उल्लेख किया है, ‘‘एक विश्वविद्यालय कलाकार का स्टूडियो है अथवा होना चाहिए जहां कोई मिट्टी या पत्थर या लकड़ी को आकार देने के लिए गढ़ा या काटा या तराशा नहीं जाना है, बल्कि विभिन्न प्रवृत्तियों, भिन्न क्षमताओं, परिवर्तनशील मनोदशाओं तथा वंशानुगत प्रवृत्तियों अथवा संस्कार वाले अनगिनत किस्मों के मनुष्यों को न केवल सुघड़ आकार में बल्कि ऐसे उपयोगी साधन के रूप में तैयार किया जाना है जो दूसरों के और उससे कहीं अधिक स्वयं के काम आ सकें। इस तरह प्राप्त उत्पाद को न केवल एक पूर्ण साभ्रांत व्यक्ति बल्कि समाज के सच्चे रूप में उपयोगी और कारगर सदस्य तथा देश के वफादार, मददगार और त्यागशील नागरिक होना चाहिए।’’ विद्यार्थियों के तौर पर, आपको एक प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली का लाभ प्राप्त है। अब आप जब ऐसे दौर में प्रवेश कर रहे हैं जहां आपको समाज को कुछ वापस लौटाना है, अपना योगदान करना है और महत्त्वपूर्ण बनना है। भारत एक महत्वांकांक्षी राष्ट्र है। हमें शिखर पर हुंचना है परंतु इसके लिए सभी के त्याग की जरूरत है। आप सभी सक्षम और बुद्धिमान हैं। हमारे देश को आगे बढ़ाना आपका कर्तव्य है। हमारे देश के लक्ष्य को साकार करने के लिए जो कुछ आवश्यक है, वह सभी कुछ करें।

मित्रो,

6. हमने अपने देश में शिक्षा के अधिकार को वास्तविकता में बदल दिया है। अब हमें सही शिक्षा पर जोर देना होगा। विश्वविद्यालय को शिक्षा का, मानवता का, सहनशीलता का तथा संतुलित चिंतन का मंदिर होना चाहिए। इसे विद्वानों, शिक्षाविदों तथा वैज्ञानिकों के बौद्धिक प्रयासों से तथा ज्ञान के आदान-प्रदान के द्वारा अपने समाज और राष्ट्र की प्रगति में योगदान देना है। शिक्षा को एक जिम्मेदार, नवान्वेषी, विश्लेषणात्मक तथा करुणामयी नागरिक तैयार करने होंगे। इसे समाज में आने वाले बदलावों के अनुरूप सकारात्मक रूप से कार्य करना होगा। प्रत्येक युवा बौद्धिक रूप से सक्षम तथा तकनीकी रूप से कुशल बनना चाहता है। परंतु बिना मूल्यों के समावेश के ज्ञान का सृजन करना निरर्थक है। मूल्य-रहित शिक्षा सुगंध-रहित फूल के समान है। शिक्षा को युवाओं को ऐसे मूल्य प्रदान करने होंगे जिससे वे सभी मानवों के प्रति संवेदनशील हों। यह एक ऐसी प्रक्रिया होनी चाहिए जो किसी व्यक्ति को सभी तरह से संपूर्ण बनाए।

7. सार्वजनिक जीवन में आने से पहले मैं एक शिक्षक था। मैं जानता हूं कि एक शिक्षक के लिए शिक्षा की खुशी विद्यार्थियों को देने; उन्हें चिंतन की धाराओं को पहचानने, उन पर विचार करने तथा उनमें भेद करने; उन्हें दायित्व के योग्य और उसे ग्रहण करने के लिए तैयार करने में कितनी संतुष्टि मिलती है। शिक्षक विश्वविद्यालय का प्राण होता है। उन्हें विषय की अपनी समझ को निरंतर बढ़ाते रहना चाहिए। उन्हें निष्ठा और समर्पण के साथ अपने विद्यार्थियों को ज्ञान प्रदान करने में सक्षम बनना चाहिए। उन्हें विद्यार्थियों का मित्र और मार्गदर्शक बनना चाहिए तथा परामर्श देने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि वे दुनिया का सामना करने के लिए कैसे खुद को बेहतर तरीके से तैयार कर सकते हैं। मैं विद्यार्थियों के जीवन की परीक्षा का सामना करने के लिए विद्यार्थियों को तैयार करने में नि:स्वार्थ परिश्रम हेतु पाण्डिचेरी विश्वविद्यालय के समस्त शैक्षिक समुदाय की सराहना करता हूं।

मित्रो,

8. देश के विकास में उच्च शिक्षा के प्रमुख महत्त्व से सभी अवगत हैं। यदि हमें एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ना है, तो शिक्षण प्रणाली को प्रगति के नक्शे पर प्रमुख स्थान देना होगा। हमारी भावी पीढ़ी को तैयार करने के लिए उत्कृष्ट शिक्षा संस्थानों का अभाव है। भारतीय विश्वविद्यालयों की गणना विश्व के सर्वोच्च विश्वविद्यालयों में नहीं होती है। यदि हम अपने अतीत को देखें तो पाएंगे कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी की शुरुआत से लेकर लगभग अठारह सौ वर्षों तक हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली का विश्व पर प्रभुत्व रहा। मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा और ओदांतपुरी विश्व स्तर के विश्वविद्यालयों की पीठ थे। आइए, मिलकर अपनी वर्तमान शिक्षा प्रणाली को एक बार पुन: प्रदीप्त करने के लिए जरूरी बदलाव लाएं।

9. हमें बदलाव के साथ चलना है। यह जानकर संतुष्टि होती है कि बारहवीं योजना अवधि के दौरान, हमने विस्तार, समता, उत्कृष्टता, शासन, धन की उपलब्धता और मानीटरिंग पर ध्यान दिया है। उच्च शिक्षा क्षेत्र में सही भावना के साथ दूरगामी बदलाव लाने के लिए इन पहलुओं को कार्यान्वित करना होगा। शैक्षिक पाठ्यक्रम को नियमित रूप से अद्यतन किया जाना चाहिए। मूल्यांकन प्रणाली को अधिक विश्वसनीय और वस्तुनिष्ठ बनाना होगा।

मित्रो,

10. विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने मानव सभ्यता की प्रगति को बहुत प्रभावित किया है। यह भावी आर्थिक प्रगति और सामाजिक विकास की कुंजी है। हमारे विश्वविद्यालयों को नवान्वेषण अनुकूल माहौल पैदा करना चाहिए। शिक्षण और अनुसंधान एक विश्वविद्यालय के दो नेत्र होते हैं। शिक्षण में उच्च स्तर प्राप्त करने के साथ-साथ ज्ञान सीमाओं के विस्तार तथा विकास के लिए प्रौद्योगिकी निर्मित करने वाले उत्कृष्ट अनुसंधान को प्रोत्साहन देना होगा। हमारे अनुसंधान की गुणवत्ता विश्व के सर्वोत्तम अनुसंधान के बराबर होनी चाहिए। हमारे अनुसंधानकर्ताओं की गंभीर समस्याओं के समाधान ढूंढ़ने के लिए आपस में सहयोग करना चाहिए। जन-साधारण के लिए उपयोगी नए उत्पाद तैयार किए जाने चाहिए। हमारे नवान्वेषणों द्वारा ग्रामीण इलाकों में आजीविका पैदा करनी चाहिए तथा जीवन की गुणवत्ता सुधारनी चाहिए। हमारे विश्वविद्यालयों द्वारा अपने परिसरों में प्रौद्यागिकियों के लिए अनुसंधान और विकास केन्द्रों के निर्माण के जरिए स्थानीय प्रौद्योगिकी जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए। ग्रामीण इलाकों में अनुसंधान परिसर स्थापित किए जाने चाहिए ताकि वे इन क्षत्रों में नवान्वेषण और प्रौद्योगिकी उन्मुख विकास के स्रोत के रूप में कार्य कर सकें।

प्रिय विद्यार्थियो,

11. अंत में, मैं कहना चाहूंगा कि वर्षों की मेहनत के बाद आप सब तैयार हैं। आपने यहां जो क्षमताएं हासिल की हैं, उन्हें आपको राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में खुलकर प्रयोग करना होगा। मैं आप सभी को एक सफल आजीविका और भावी सार्थक जीवन के लिए शुभकामनाएं देता हूं। आपके सभी स्वप्न पूरे हों। मैं पाण्डिचेरी विवविद्यालय और इससे जुड़े सभी लोगों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।

धन्यवाद,

जय हिंद!