मुझे, महान श्रीलंकाई बौद्ध पुनर्जागरणवादी और लेखक अंगारिका धर्मपाल के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए स्मारक डाक टिकट जारी करने के लिए आज यहां उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता हुई है।
2. मैं, अंगारिका धर्मपाल पर स्मारिक डाक टिकट जारी करने की इस पहल के लिए डाक विभाग को बधाई देता हूं। मुझे उम्मीद है कि इस सद्भावना से भारत और श्रीलंका के द्विपक्षीय सम्बंध और मजबूत करने तथा दोनों देशों को और करीब लाने में मदद मिलेगी। ऐतिहासिक रूप से,भारत और श्रीलंका स्वाभाविक सहयोगी बने हुए हैं। दोनों देशों के सम्बंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं तथा सदियों से सामाजिक-सांस्कृतिक आदान-प्रदान से विभिन्न क्षेत्रों में और अधिक घनिष्ठ सहयोग को प्रोत्साहन मिला है। दोनों देशों को दीर्घकालिक औपनिवेशिक शासन की विरासत के रूप में प्राप्त अनेक मुद्दों के समाधान के लिए एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखना और ग्रहण करना है। मुझे विश्वास है कि हमारी जनता के परस्पर लाभ के लिए दोनों देशों के बीच सम्बन्ध आने वाले वर्षों में और घनिष्ठ होते रहेंगे।
देवियो और सज्जनो,
3. विश्व का एक प्रमुख धर्म बौद्ध धर्म भारत में आरंभ हुआ था और यह अहिंसा तथा भौतिक उन्नति की अपेक्षा आध्यात्मिक उत्कृष्टता की प्राप्ति पर आधारित है। इसके सिद्धांत इस युग में भी अत्यंत प्रासंगिक बने हुए हैं। बौद्ध धर्म शांति और स्थिरता को प्रोत्साहन देता है तथा करुणा और सहिष्णुता की भावना का दृढ़ता से समर्थन करता है। इसका लक्ष्य मानवता को युद्ध और झगड़ों से दूर रखना तथा लोगों को अपनी सामूहिक ऊर्जा समाज की भलाई में लगाने के लिए प्रेरित करना है।
4. बौद्ध धर्म के एक संत पर जारी यह डाक टिकट हमें फिर से जनता के तीव्र सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण के सृजन हेतु शांति, स्थाईत्व तथा मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों के युग का सुनिश्चित करने के लिए अथवा सामूहिक प्रयास करने की याद दिलाता है।
5. इस पृष्ठभूमि में, महान बौद्ध विचारक और प्रचारक, अंगारिका धर्मपाल जिन्होंने व्यावहारिक जीवन जीया तथा बौद्ध आदर्शों का पालन किया और बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण के लिए अंतिम सांस तक कार्य किया, की उपलब्धियों को याद करना तथा भावी पीढ़ी के लिए सहेज कर रखना और अधिक जरूरी हो गया है।
देवियो और सज्जनो,
6. अंगारिका धर्मपाल सिंहली बौद्ध राष्ट्रवाद के एक आरंभिक योगदानकर्ता थे तथा भारत में बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण में भी अग्रणी थे। उन्होंने न केवल बौद्ध धर्म को अपनाया बल्कि इसे सिंहली राष्ट्रवादी पहचान भी प्रदान की। उन्होंने बौद्ध धर्म की नींव की इसके जन्मस्थान भारत में रक्षा और संरक्षण के लिए लंबा संघर्ष किया। वह थियोसोफिकल सोसायटी में शामिल हुए तथा सीलोन के बौद्ध धर्म के सुधार और पुनर्जागरण तथा इसके प्रचार-प्रसार में अग्रणी बने। बाद में वह श्रद्धेय श्री देवमित्त धर्मपाल के रूप में बौद्ध भिक्षु बन गए तथा उन्हें श्रीलंका में बौद्धिसत्व माना जाता है। उन्हें 1933 में सारनाथ में विधिवत भिक्खु बनाया गया तथा उसी वर्ष दिसम्बर में वहीं उनका देहांत हो गया।
7. 1891 में, अंगारिका धर्मपाल ने बौद्ध गया के महाबोधी मंदिर की तीर्थयात्रा की, जहां बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। उन्होंने इसकी महानता की पुन:स्थापना का कार्य करने का निर्णय किया। इसके पश्चात 1891 में कोलम्बो में महाबोधि सोसायटी की स्थापना की गई तथा उसका एक प्रमुख लक्ष्य बौद्ध गया में महाबोधि मंदिर को वापस बौद्ध नियंत्रण में लाना था।
8. अधिकांश लोग अंगारिका धर्मपाल को उनके धार्मिक उत्साह के लिए याद करते हैं। परंतु इस महान विभूति का एक अन्य गुण—गरीबी का उन्मूलन, उनकी एक अन्य व्यावहारिक संकल्पना थी। सीलोन के ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता के ऐतिहासिक संघर्ष में अंगारिका धर्मपाल के स्वर की एक उल्लेखनीय भूमिका थी। उन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष की सफलता के लिए दृढ़ शैक्षिक और आर्थिक आधार के महत्त्व का उल्लेख किया। उन्होंने अपने देश में स्कूलों और अस्पतालों की स्थापना पर भी ध्यान दिया। उनकी एक नए उभरते हुए सिलोन की संकल्पना थी जो अन्य देशों के साथ प्रभावी रूप से संबंध बनाए और आगे बढ़े।
9. 1893 में धर्मपाल को ‘दक्षिणी बौद्ध धर्म’—उस समय थेरवाड़ा के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता था, के प्रतिनिधि के रूप में शिकागो की विश्व धर्म संसद के लिए आमंत्रित किया गया था। वहां वह स्वामी विवेकानंद से मिले और उन्हें उनसे मिलकर अच्छा लगा, संसद में उन्हें भी महान सफलता प्राप्त हुई।
देवियो और सज्जनो,
10. इस अवसर पर, इस महान विभूति को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं एक बार फिर डाक विभाग का अंगारिका धर्मपाल पर स्मारक डाक टिकट जारी करने के लिए बधाई देता हूं, जिन्होंने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के प्रचार तथा बौद्ध धर्म के पुराने गौरव को वापस लाने के लिए जीवनभर नि:स्वार्थ तथा सेवा भाव से कार्य किया।
जय हिंद!