मुझे रॉयल सोसाइटी द्वारा भारत में पहली बार आयोजित किए जा रहे राष्ट्रमंडल विज्ञान सम्मेलन में भाग लेकर प्रसन्नता हो रही है।
रॉयल सोसाइटी विश्व की महान विज्ञान अकादमियों में से एक है। यह न केवल सबसे पुरानी है बल्कि एक ऐसी अकादमी है जिसका उपलब्धियों का महान इतिहास है। रॉयल सोसाइटी ने गुणवत्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए कई दशकों तक विज्ञान की दिशा निर्धारित की है। किसी व्यक्ति के लिए रॉयल सोसाइटी के फैलो के रूप में चुना जाना एक विशिष्ट उपलब्धि तथा सम्मान है। स्वतंत्र भारत के बहुत से वैज्ञानिकों को इसका फैलो चुना गया है। इनमें से एक प्रमुख सितारे प्रोफेसर सी.एन.आर. राव हैं जो इस बैठक के मुख्य आयोजकों में शामिल हैं। भारत को, विशेष रूप से प्रोफेसर राव तथा विज्ञान तथा संस्था निर्माण के प्रति उनके योगदान पर गर्व है। विज्ञान और राष्ट्र को उनकी सेवाओं के सम्मान स्वरूप उन्हें इसी वर्ष उच्चतम असैनिक पुरस्कार भारत रत्न प्रदान किया गया था।
यह खुशी की बात है कि भारत का सूचना प्रौद्योगिकी का प्रमुख केंद्र तथा बहुत सी वैज्ञानिक संस्थानों का शहर बेंगलूरु इस राष्ट्रमंडल विज्ञान सम्मेलन का मेजबान है। मैं समझता हूं कि भारत से रॉयल सोसाहटी के कई हाल ही के फैलो बेंगलूरु के भारतीय विज्ञान संस्थान तथा टाटा इंस्टिट्यूट के जैविक विज्ञान के राष्ट्रीय केंद्र से संबंधित हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन,जिसके वैज्ञानिक देश की शान हैं,का मुख्यालय भी यहीं स्थित है। इसरो की मंगलयान अथवा मंगल मिशन की अभी हाल ही की उपलब्धि को टाइम मैगजीन द्वारा वर्ष के25सर्वोत्तम आविष्कारों में उल्लेख करते हुए इसे न केवल हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए वरन् समग्र विज्ञान के लिए शुभ संकेत माना है। भारत,मंगल पर पहुंचने वाला चौथा देश है। यह अपने पहले ही प्रयास में तथा केवल74मिलियन अमरीकी डालर की लागत से,दूसरे देशों द्वारा किए गए खर्च का केवल छोटा सा हिस्सा,अपना उद्देश्य पाने वाला पहला देश है।
विशिष्ट अतिथिगण, देवियो और सज्जनो,
राष्ट्रमंडल एक अनोखा अंतरराष्ट्रीय संगठन है। यह विश्व भर में जातिगत,धार्मिक,सांस्कृतिक, भौगोलिक विस्तार तथा विकास के चरणों के आधार पर विविधता से परिपूर्ण उत्तर-दक्षिण विभाजन के आर-पार विस्तार लिए हुए है। इसके अधिकांश सदस्य31छोटे देशों से हैं जिनकी जनसंख्या 1.5 मिलियन अथवा उससे कम है। परंतु बड़े सदस्य राष्ट्रों की उनके साथ बहुत सी समानताएं हैं। इस प्रकार राष्ट्रमंडल संवाद और वैश्विक मुद्दों पर आपसी समझ विकसित करने तथा अंतरराष्ट्रीय कार्यवाही पर आमराय बनाने का बहुत ही उपयोगी मंच है।
भारत राष्ट्रमंडल का संस्थापक सदस्य है तथा यहां इस एसोसियेशन की लगभग60प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। भारत राष्ट्रमंडल बजट एवं कार्यक्रमों का चौथा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। यह विकासशील राष्ट्रमंडल देशों को सहायता देने के उद्देश्य के लिए तकनीकी सहयोग पर राष्ट्रमंडल फंड में तकनीकी विशेषज्ञों को भेजने वाला यू.के. के बाद दूसरा देश है।
देवियो और सज्जनो,
भारत राष्ट्रमंडल के बुनियादी मूल्यों तथा सिद्धांतों के प्रति दृढ़ता से प्रतिबद्ध है। इसका मानना है कि राष्ट्रमंडल में विश्व के समक्ष मौजूद वर्तमान चुनौतियों के बारे में और भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता है तथा यह विकासशील तथा विकसित देशों के बीच सेतु के निर्माण का कार्य कर सकता है। हमारा यह नजरिया है कि अपनी विविधतापूर्ण सदस्यता तथा सर्वसम्मति और अनौपचारिकता पर आधारित कार्य करने की लोकतांत्रिक शैली के कारण राष्ट्रमंडल समसामयिक मुद्दों पर वैश्विक स्तर पर आवाज उठाने के लिए उपयुक्त मंच है। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि सभी राष्ट्रमंडल देश न केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित समसामयिक मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए बल्कि इस बात की संभावना तलाश करने के लिए भी सहयोग करें कि आज मानवता के समक्ष मौजूद आसन्न चुनौतियों के समाधान के लिए विज्ञान का बेहतर उपयोग कैसे किया जाए।
भारत में हमारे पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू ने हमारी आजादी के शुरुआती दिनों से ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता प्रदान की। नए शैक्षणिक तथा अनुसंधान संस्थानों की रचना1950से ही आरंभ हो चुकी थी। बहुत पहले 1951 में ही देश ने परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना का निर्णय लिया था जिसने भारत को अपने खुद के रियेक्टरों का निर्माण करने के योग्य बनाया। शीघ्र ही अंतरिक्ष कार्यक्रम आरंभ किया गया था जिसने हमें रॉकेट तथा उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपण में सक्षम बनाया। आजादी के समय में हमारा कृषि सेक्टर कम विकसित था तथा हम खाद्यान्न आयात पर निर्भर थे। विज्ञान और जन-नीति में तालमेल के परिणामस्वरूप ही हमारी कृषि प्रणाली का प्रौद्योगिकीय उच्चीकरण हुआ। हमारे वैज्ञानिकों की उत्कृष्टता तथा हमारे किसानों के श्रम ने मिलकर साठ के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत की,जिसने न केवल हमारे देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाया बल्कि आज वह एक प्रमुख निर्यातक बन चुका है। इस तरह के बदलावों के उदाहरण मानव इतिहास में कम ही मिलते हैं। इसके बाद के वर्षों में भारत में हुए अनुसंधान से एक मजबूत फार्मास्यूटिकल उद्योग और उसके बाद हाल ही में बायोटेक्नॉलॉजी तथा सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का उदय हुआ।
भारत में हम अपने भाग्य को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारी प्रगति से अपरिहार्य रूप से जुड़ा हुआ मानते हैं। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा डिजिटल क्रांति हमारे जीवन में तेजी से बदलाव ला रही है। भारत में मोबाइल फोन प्रयोक्ताओं की संख्या सितंबर, 2014 के अंत में लगभग 930मिलियन थी जो कि चीन के बाद विश्व में दूसरी सबसे ऊंची संख्या थी।74.55की हमारी मोबाइल फोन सघनता अन्य ऊंचे दर्जे वाले देशों की तुलना में बेहतर है। भारत इन्टरनेट प्रयोक्ताओं के मामले में भी चीन और संयुक्त राज्य अमरीका के बाद तीसरे स्थान पर है। इसी के साथ हमारी जनसंख्या के प्रतिशत के हिसाब से इंटरनेट की पहुंच अभी केवल19.2 प्रतिशत है जो इसके भावी विकास की प्रचुर संभावनाओं को दर्शाता है।
1958में भारत की संसद ने एक विज्ञान नीति संकल्प अपनाया था जिसमें विज्ञान को इसके सभी स्वरूपों में‘पोषण,संवर्धन तथा निरंतरता’प्रदान करने का वायदा किया गया था।2013 में सरकार द्वारा एक विज्ञान,प्रौद्योगिकी तथा नवान्वेषण नीति शुरू की गई थी जिसका उद्देश्य एक महत्वाकांक्षी भारत के भविष्य की दिशा निर्धारित करना था। आज जब हम अपने समाज में बदलाव लाने के लिए विज्ञान का प्रयोग कर रहे हैं हम बुनियादी विज्ञान में निरंतर निवेश के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ तथा प्रतिबद्ध हैं।
भारतीय वैज्ञानिकों ने 2012 में हिग्स बोसोन परमाणु की खोज में गौरवशाली भागीदार रहे हैं। हम जीवन विज्ञान के क्षेत्र में वैश्विक सहयोग में भागीदार रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप रोटावायरस के लिए कम कीमत का टीका विकसित किया जा सका, जिसे शीघ्र ही हमारे राष्ट्रीय प्रतिरक्षण कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा। भारतीय वैज्ञानिक समुदाय जर्मनी के डार्मस्टड में एन्टीप्रोटोन तथा आयोन रिसर्च;इटली के ट्रियेस्टे में इलैट्रा सिंक्रोट्रोन फैसिलिटि में मैक्रोमोलेक्यूलर क्रिस्टलोग्राफी एंड हाई प्रैसर फिजिक्स बीम लाइन;संयुक्त राज्य अमरीका की फर्मी लैब में न्यूट्रिनो एक्सपेरिमैंट्स;हवाई के मोनाकी में द थर्टी मीटर टेलेस्कोप प्रोजेक्ट;दक्षिण अफ्रीका और आस्ट्रेलिया में द स्क्वायर किलोमीटर अरे परियोजना;तथा जेनेवा में लार्ज हैड्रोन कोलाइडर के प्रयोगों जैसी परियोजनाओं का हिस्सा रहा है। हमें उम्मीद है कि हम शीघ्र ही डिजीज बायोलॉजी,मेरीन बायोलॉजी तथा बॉयोइन्फोर्मेटिक्स में अंतरराष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रम को शुरू करेंगे।
नैनो विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी दूसरा क्षेत्र है जिस पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इस नवीन तथा सक्रिय क्षेत्र में अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देने के लिए‘नैनो मिशन’नामक एक सर्वसमावेशी कार्यक्रम शुरू किया गया है। भारत इस क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रकाशनों के मामले में तीसरे स्थान पर है।‘नैनो मिशन’इस बात पर एक अच्छा प्रकरण अध्ययन हो सकता है कि सरकारी पहल का केंद्र बनाकर किसी विशिष्ट वैज्ञानिक क्षेत्र में क्षमता तथा योग्यता को मजबूत कैसे किया जा सकता है। प्रोफेसर सी.एन. राव ने इस सफल प्रयास का नेतृत्व किया है। मैं उनकी इस शानदार पहल के लिए उन्हें बधाई देता हूं।
विभिन्न नई पहलें शुरू होने वाली हैं जिनमें से कुछ सौर ऊर्जा,विद्युत सचलता,उच्च ऊर्जा भौतिकी, खगोलविज्ञान, टीका तथा औषधि खोज, सामुद्रिक जीव विज्ञान आदि के क्षेत्रों में हैं। हमें भविष्य में तीन तरह के वैज्ञानिक प्रयासों को केंद्र में रखने की उम्मीद है :
(1) उन्नत पदार्थ तथा चिकित्सा जीव विज्ञान सहित, बुनियादी विज्ञान में महत्त्वपूर्ण प्रगति से संबंधित स्वतंत्र अनुसंधान
(2) मनुष्यों की तात्कालिक समस्याओं, जैसे कि भारत के लिए विशिष्ट जल और रोग संबंधी अनुसंधान और विकास
(3) उन क्षेत्रों में,जिनमें भारत विश्व के अग्रणी देश के रूप में उभर कर आ सकता है। हमें ऐसे क्षेत्रों की पहचान करे उनमें समुचित रूप से सहयोग करने की उम्मीद है।
देवियो और सज्जनो,
मैं समझता हूं कि विकासशील देशों में वैज्ञानिक क्षमता का निर्माण एक ऐसा महत्त्वपूर्ण विषय है जिस पर इस सम्मेलन में विचार-विमर्श होगा। मुझे रॉयल सोसाइटी द्वारा अफ्रीका में विज्ञान प्रेषण के लिए शुरू की गई पहलों के बारे में जानकर भी खुशी हो रही है। विश्व की प्रमुख प्रयोगशालाओं के साथ राष्ट्रमंडल देशों के युवा वैज्ञानिकों के सहयोग को बढ़ाना होगा। शिक्षण और शिक्षक गुणवत्ता में भी हर स्तर पर,खासकर स्कूली स्तर पर,सुधार जरूरी है। मेरा मानना है कि यदि इन क्षेत्रों में कार्य करने के लिए ठोस कार्यक्रम बनाए जा सकें तो राष्ट्रमंडल विज्ञान सम्मेलन रूपांतरकारी हो सकता है।
मैं समझता हूं कि इस सम्मेलन का एक उद्देश्य युवा वैज्ञानिकों की पहचान कर उन्हें प्रोत्साहित करना है। मैं यह भी देख रहा हूं कि युवा वैज्ञानिकों को इस बैठक में भाग लेने और शोधपत्र प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया है। मेधावी विद्यार्थियों का विज्ञान के अध्ययन तथा विज्ञान में आजीविका अपनाने के प्रति आकर्षण बहुत से विकासशील देशों और वास्तव में पूरे विश्व के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। विश्व भर के हर एक सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के युवकों और युवतियों को विज्ञान के परिशुद्ध उपकरणों के बारे में जानने का अवसर मिलना चाहिए, जिससे वे हमारे ग्रह और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने के अपने सपनों को साकार कर सकें। मुझे आपको इस दिशा में मेरी सरकार की एक प्रमुख पहल इन्नोवेशन इन साइंस परस्यूट फॉर इंस्पायर्ड रिसर्च स्कीम के बारे में बताते हुए प्रसन्नता हो रही है, जिसे हमारे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। पिछले पांच वर्षों के दौरान एक मिलियन से अधिक विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया गया है जिनमें से230नवान्वेषणों पर अंतरिम पेटेंट करवाने के लिए कार्रवाई की जा रही है।
राष्ट्रमंडल देशों को द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय ‘विशाल विज्ञान’पहलों में सहयोग करना होगा। अपनी विशालता और तकनीकी जटिलता के कारण इस तरह की‘विशाल विज्ञान’परियोजनाएं अनिवार्यत: बहु-एजेंसी,बहु-संस्थान तथा प्राय: अंतरराष्ट्रीय प्रकृति की होती है। मैं रॉयल सोसाइटी को राष्ट्रीय फंड प्रदाता एजेंसियों और परोपकार से प्राप्त सहयोग के साथ ऐसे अंतरराष्ट्रीय सहयोग के विकास कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहूंगा जिसका विस्तार वेस्टइंडीज से आस्ट्रेलिया तक हो। इस कक्ष में उपस्थित मेधावी बुद्धिजीवी मिलकर,विश्व भर के युवाओं में विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति को बढ़ावा दे सकते हैं तथा विश्व को एक बेहतर स्थान बना सकते हैं। भारत को इसमें किसी भी तरीके से सहयोग करने में, खासकर राष्ट्रमंडल के छोटे देशों में वैज्ञानिक आधार और अनुसंधान क्षमताओं को मजबूत बनाने में,खुशी होगी।
विशिष्ट अतिथिगण, देवियो और सज्जनो,
विज्ञान मानव मस्तिष्क का एक सृजनात्मक प्रयास है। विज्ञान सार्वभौमिक और मौलिक सच्चाई की तलाश करता है। विज्ञान मानव के जीवन की उन्नति में अत्यंत प्रमुख भूमिका निभाता है तथा इसका अध्ययन प्रौद्योगिकीय प्रगति पर केंद्रित है। आधुनिक समाजों और राष्ट्रों को वैज्ञानिक ज्ञान पर निर्मित करना होगा। व्यक्तियों, समाजों तथा राष्ट्रों द्वारा लिए गए विकल्प और निर्णय वैज्ञानिक संस्कृति और तार्किकता द्वारा तय होने चाहिए।
मैं प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को उद्धृत करते हुए अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा। वे प्राय: कहा करते थे, ‘‘भविष्य विज्ञान का है तथा उनका है जो विज्ञान को मित्र बना लेंगे।’’
मैं यहां उपस्थित आप सभी लोगों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान करता हूं कि राष्ट्रमंडल विज्ञान सम्मेलन आम आदमी को फायदा पहुंचाने वाले नवान्वेषी विचारों के प्रस्फुटन के लिए एक मंच के रूप में कार्य करें।
धन्यवाद,
जय हिंद!