1. एआई-भीमवरम में आज वेदपाठशाला का उद्घाटन करना मेरा सौभाग्य है। मुझे विश्वास है कि वेदपाठशाला वैदिक ज्ञान,वाचिक परंपराओं तथा हमारी विरासत के प्रोत्साहन केंद्र के रूप में उभरेगा। मैं वैदिक शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों के लाभ के लिए वेदपाठशाला खोलने की पहल के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम को बधाई देता हूं।
2. तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट बोर्ड ने समाज में वैदिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लक्ष्य से वैदिक परंपराओं और शिक्षा में सदैव सहयोग और प्रोत्साहन दिया है।
3. वेद हमारी विरासत,संस्कृति का स्रोत हैं तथा हमारी मूल्य प्रणाली की नींव का निर्माण करते हैं। वेदों में निहित विचार वास्तव में परोपकारी संदेश हैं जो केवल व्यक्ति,समाज और राष्ट्र के कल्याण तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि वे सार्वभौमिक बंधुत्व की भावना भी व्यक्त करते हैं।‘वसुधैव कुटुंबकम’की पारंपरिक भारतीय दर्शन हमारी विश्व दृष्टि के सार को सुंदर ढंग से समाहित करता है। यूनेस्को ने वेदों को वाचिक धरोहर के रूप में मान्यता दी है तथा इसे इसके नैसर्गिक रूप में संरक्षित रखना हमारा पावन कर्तव्य है।
4. वेद हमारी पारंपरिक भारतीय संस्कृति और मूल्यों का प्रमुख प्रसाद है। वे प्राचीन वैदिक शिक्षाओं और दृष्टांतों के माध्यम से अन्तर्दृष्टिपूर्ण ज्ञान,प्रज्ञा और समझ प्रदान करते हैं। वैदिक ऋषियों ने 14विधाओं को 4 वेदों, 6वेदांगों, पुराणों,न्याय, मीमांसा तथा दर्शनशास्त्रों में संहिताबद्ध किया था। इन वैदिक ग्रंथों में विश्व शांति,समृद्धि और सतत विकास का संदेश निहित है। ‘लोका समस्ता सुखिन: भवंतु’सार्वभौमिक शांति और समृद्धि का सिद्धांत है।
5. प्राचीन भारत में,सभी विद्याएं आवासीय विश्वविद्यालयों अथवा गुरुकुलों में पढ़ाई जाती थीं,जिनमें तक्षशिला, विक्रमशिला और ओदंतपुरी जैसे कुछ विश्वविद्यालय थे,इनके अवशेष पाए गए हैं। ये पूरे विश्व विशेषकर चीन और दक्षिणपूर्व एशियाई देशों में अत्यंत प्रसिद्ध थे। इन सभी विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों को14 विद्याएं पढ़ाई जाती थी। आंध्र प्रदेश में भी गोदावरी,कृष्णा नदियों के साथ नागार्जुनकोंडा,अमरावती आदि अनेक शिक्षा केंद्र थे जिनमें बहुत से विदेशी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम की वेदपाठशालाएं गुरु और ऋषियों द्वारा स्थापित महान शिक्षा संस्थाओं का स्मरण करवाती हैं।
विशिष्ट अतिथिगण, देवियो और सज्जनो,
6. वेदों का वास्तविक संदेश तभी प्राप्त किया जा सकता है जब इनकी सही व्याख्या की जाए। वस्तुत: भारत में वैदिक शिक्षाओं की प्राचीन भारतीय परंपरा मुख्य तौर से वाचिक थी तथा यह गुरु-शिष्य परंपरा की नींव पर आधारित थी। उस प्रणाली के अंतर्गत, वैदिक साहित्य की प्रामाणिक और सही व्याख्या एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को गुरु द्वारा शिष्य को सौंपी जाती थी। गुरु वैदिक ज्ञान की सही व्याख्या प्रदान करने का एक विश्वसनीय माध्यम था। यद्यपि समय के साथ यह प्रणाली क्षीण होती गई। इसलिए वेद पाठशालाओं के निर्माण जैसी पहल अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई क्योंकि वे वैदिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार को संस्थागत ढांचा प्रदान कर सकती है।
प्रिय विद्वतगण,
7. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम वेदों की वाचिक परंपरा के संरक्षण के अनेक उपाय कर रहा है। मुझे बताया गया है कि यह वित्तीय सहायता प्रदान करके1000 से अधिक वैदिक विद्वानों को सहयोग दे रहा है। यह देश भर में फैली100 वेदपाठशालाओं को भी वित्तीय सहायता उपलब्ध करवा रहा है। यह तिरुमाला,हैदराबाद, नागालैंड,विजयनगरम, कोटाप्पाकोंडा तथा एआई-भीमवरम में सात वेदपाठशालाओं का संचालन कर रहा है। इसने श्री वेंकटेश्वर वैदिक विश्वविद्यालय भी आरंभ किया है जो अपने प्रकार का अनूठा संस्थान है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इसने प्रख्यात वैज्ञानिकों के सहयोग से वैज्ञानिक अनुसंधान करने के लिए आरसीआई-डीआरडीओ के साथ एक समझौता ज्ञापन किया है। इसने वैज्ञानिक संस्थानों की प्रबुद्ध देखरेख में वेदों पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए वेद विज्ञान अनुसंधान केंद्र की भी स्थापना की है। इसने वेदों की वाचिक परंपरा को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्ट वैदिक अध्ययन केंद्र के रूप में7 पाठशालाओं को भी मान्यता दी है। इसने भावी पीढ़ियों के लिए10 विश्व वैदिक शाखाओं को अभिलेखबद्ध करने की पहल की है। यह वैदिक ज्ञान संरक्षण,समेकन तथा प्रसार का एक सराहनीय प्रयास है।
8. इस सुखद अवसर पर,मैं वैदिक शिक्षण के इस महान केंद्र को नेतृत्व प्रदान करने तथा वैदिक शिक्षा की लोकप्रियता हेतु नवान्वेषी कार्यक्रमों का निर्माण करने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम तथा आंध्र प्रदेश सरकार को बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि यह वेदपाठशला शिक्षण के एक प्रख्यात केंद्र तथा हमारे पारंपरिक वैदिक ज्ञान की पीठ के रूप में उभरेगी।
धन्यवाद!
जयहिन्द।