1. मुझे, इतिहास, संस्कृति तथा विरासत से समृद्ध छत्तीसगढ़ में एक बार फिर आने के लिए इस अवसर का उपयोग करते हुए प्रसन्नता हो रही है। यह भूमि राम की माता, कौशल्या की भूमि तथा वाल्मीकि की तपोभूमि मानी जाती है। यहां कल्चुरी वंश के 800 वर्षों के शासन ने पंचायती
राज की एक महत्वपूर्ण धरोहर प्रदान की, जो कि देश में सबसे पुरानी प्रणालियों में से है। स्वामी विवेकानंद अपने बाल्यकाल में बहुत वर्षों तक रायपुर में रहे। महात्मा गांधी स्वतंत्रता संग्राम में इस क्षेत्र के राष्ट्रवादियों की सहभागिता के प्रति आभार प्रकट करने के
लिए छत्तीसगढ़ आए थे। गहन आध्यात्मिक ज्ञान के लिए प्रख्यात दो संतों, संत कबीर तथा गुरु बाबा घासीदास को यहां बहुत अधिक संख्या में लोग मानते हैं। इस स्थान की समृद्ध जनसांख्यिकी, जिसमें से लगभग एक तिहाई जनसंख्या प्राचीन आदिवासियों सहित जनजातियों की है, ने दूर-दूर
से मानव विज्ञानियों को आकर्षित किया है। छत्तीसगढ़ को विपुल मात्रा में प्राकृतिक संसाधन मिले हैं। इसके 41 प्रतिशत भूभाग जंगलों से आच्छादित हैं तथा यहां लौह अयस्क, एल्यूमिनियम, बॉक्साइट, टिन तथा कोयले जैसे खनिजों की बहुतायत है। वर्ष 2000 में अपनी स्थापना के
बाद छत्तीसगढ़ एक सबसे तेजी से विकासमान राज्य बनकर उभरा है। यह भविष्य में सर्वांगीण विकास की संभावनाओं से युक्त है।
मित्रो,
2. पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ के सबसे प्राचीन तथा सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से है। यह 1964 में तब स्थापित हुआ था जब यह राज्य मध्यप्रदेश का हिस्सा था। मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री के नाम के इस विश्वविद्यालय ने 34 संबद्ध कॉलेजों के साथ
कार्य करना शुरू किया था। सबसे पहले इसके पुस्तकालय का भवन बना था जिसका नामकरण इस क्षेत्र के प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी तथा समाज सुधारक पंडित सुंदर लाल शर्मा के नाम पर रखा गया था। इस विश्वविद्यालय ने 1968 में ही सेमेस्टर प्रणाली शुरू कर दी थी। इसने पाठ्योत्तर
क्रियाकलापों को विद्यार्थियों के विकास कार्यक्रमों का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। यह अत्यंत संतुष्टिकारक है कि एक छोटे से संस्थान से आरंभ होकर यहां आज भारी प्रगति करते हुए उच्च शिक्षा का एक गौरवशाली संस्थान बन चुका है। इसमें 27 विभाग, 10 जिलों में फैले 237 संबद्ध
कॉलेज तथा 2 लाख से अधिक विद्यार्थी हैं। मैं इस संस्थान से जुड़े सभी पूर्व एवं वर्तमान लोगों को बधाई देता हूं।
3. विश्वविद्यालयों का, जो कि औपचारिक शिक्षा प्रणाली के उच्चतम् स्थान होते हैं, समाज में विशेष स्थान होता है। यह ज्ञान के मंथन तथा मस्तिष्क को ढालने के पावन स्थल हैं। विश्वविद्यालय तथा उसके शिक्षकों पर ऐसे व्यक्तियों को तैयार करने की महती जिम्मेदारी होती है
जो हर तरह से पूर्ण हों। मैं उच्च शिक्षा केंद्रों को न केवल विद्यार्थियों के लिए वरन् संपूर्ण समाज के लिए प्रकाश स्तंभ के रूप में देखता हूं। उन्हें एक ऐसी विश्वास प्रणाली का समावेश करना होगा जो हमारी सार्वभौमिक प्रज्ञा तथा दर्शन में निहित है। आधुनिक नजरिए को
अपनाने का अर्थ अपने अतीत के बुनियादी मूल्यों से विचलित होना नहीं है। मातृभूमि से प्रेम; कर्तव्य का निर्वहन; सभी के प्रति करुणा; बहुलवाद के प्रति सहिष्णुता; महिलाओं के प्रति आदर; जीवन में ईमानदारी; आचरण में संयम; कार्यों में जिम्मेदारी तथा अनुशासन जैसे हमारे
सभ्यतागत मूल्य देश एवं काल से परे सर्वकालिक सत्य हैं। वे सदियों से चले आ रहे हैं। यह हमारे विश्वविद्यालयों का दायित्व है कि वह ‘आधारभूत मूल्यों’ की जिम्मेदारी अगली पीढ़ी को सौंपें।
प्यारे विद्यार्थियो,
4. दीक्षांत समारोह आपके जीवन का एक महत्वपूर्ण दिन है। यह आपके तथा आपके माता-पिता, शिक्षकों, संबंधियों तथा मित्रों उन सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जिनकी आपकी सफलता में भागीदारी है। आपने शुरू से ही सपना देखा था। अब आपने-अपने सपनों को पूर्ण करने के लिए पंख
हासिल कर लिए हैं। आज, जब आप अपने संस्थान से विदा ले रहे हैं, आश्वस्त रहिए कि आपकी शिक्षा ने आपको एक आरामदायक जीवन जीने के काबिल बना दिया है और विषम परिस्थितियों का सामना करने के लिए भी तैयार कर दिया है। एक जागरुक नागरिक और प्रतिभावान युवा होने के कारण आपको
न केवल अपने अधिकारों बल्कि अपने कर्तव्यों और दायित्वों की भी जानकारी होनी चाहिए। अपने कम भाग्यशाली भाइयों के बारे में सोचने के लिए भी समय निकालिए, जिन्हें शिक्षा के लाभों में हिस्सेदार बनने का अवसर नहीं मिला है। उनके उत्थान के लिए कार्य करना आपका कर्तव्य है।
आपको अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों और सामाजिक प्रतिबद्धता में तालमेल बिठाना होगा। दोनों का एकीकरण संभव है। इसके लिए, आपको अपने देश के प्रति दायित्व की भावना से प्रेरित होना चाहिए। मुझे विश्वास है कि आप यहां अर्जित शिक्षा का पूरा उपयोग करेंगे। स्वामी विवेकानंद के
इन शब्दों को याद रखिए, ‘सारी शक्ति आपमें छिपी है; आप कुछ भी कर सकते हैं; पर विश्वास करिए, यह मत समझिए कि आप निर्बल हैं।’
मित्रो,
5. हमारे संविधान में भारतीय नागरिक को प्रदत्त एक मौलिक कर्तव्य है, ‘व्यक्तिगत और सामूहिक कार्य के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करना ताकि निरंतर प्रयास और उपलब्धि के उच्च स्तर तक राष्ट्र का उत्थान हो।’ राष्ट्र की प्रगति को तीव्र करने के लिए युवा भारतीयों
की रचनात्मक योग्यता और उद्यम में मदद के लिए, हमें एक ठोस शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है। यद्यपि हमें 720 से ज्यादा डिग्री प्रदान करने वाले संस्थान और 37000 कॉलेजों के एक विराट उच्च शिक्षा नेटवर्क होने का गौरव प्राप्त है परंतु अभी उनमें से अधिकतर का स्तर उठाने
की काफी गुंजाइश है। प्राचीन काल में नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा में विश्व में अग्रणी थे, परंतु आज कहानी अलग है। प्रतिष्ठित एजेंसियों के अनुसार, एक भी भारतीय संस्थान विश्व के सर्वोच्च 200 विश्वविद्यालयों में शामिल नहीं है।
6. विश्व का सबसे युवा जनसंख्या वाला भारत जैसा देश मानव संसाधन तैयार करने के मामले में बेहतर ढंग से सुसज्जित होना चाहिए। हमारे उच्च शैक्षिक संस्थानों में उत्कृष्टता की संस्कृति प्रोत्साहित की जानी चाहिए तथा प्रमुख योग्यताओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। संस्थानों
के बीच शैक्षिक सहयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अनुसंधान उच्च श्रेणी का होना चाहिए तथा स्थानीय मुद्दों और विशिष्ट क्षेत्रों को ध्यान में रखकर उन्हें प्राथमिकता प्रदान करनी चाहिए। संभावित जमीनी नवान्वेषण सामने लाने और सहयोग करने के लिए नवान्वेषण क्लब जैसे
संस्थागत तंत्रों का निर्माण करना चाहिए।
7. अध्यापन उच्चतम श्रेणी का होना चाहिए तथा प्रतिभाओं को आकर्षित करके और यहीं रोककर; उद्योग, प्रतिभाओं और अनुसंधान संस्थानों से विशेषज्ञ नियुक्त करके, संकाय के पेशेवर विकास तथा पेशेवर शैक्षिक पाठ्यक्रमों पर बल देकर सहयोग करना चाहिए। राज्य स्तरीय संस्थानों को
जिनका उच्च शिक्षा क्षमता में 96 प्रतिशत हिस्सा है, उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। कॉलेजों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि लगभग 87 प्रतिशत विद्यार्थियों का बड़ा हिस्सा इनमें अध्ययनरत है।
संबंधित विश्वविद्यालयों को पाठ्यक्रम और मूल्यांकन में उच्च मानदंड कायम रखने के लिए उनका मार्गदर्शन करना चाहिए।
मित्रो,
8. विगत कुछ वर्षों के दौरान, शैक्षिक संस्थानों की संख्या में वृद्धि से कुल प्रवेश अनुपात में निरंतर बढ़ोतरी हुई है। परंतु 18 प्रतिशत होने पर भी, यह अधिकांश विकसित देशों तथा रूस ब्राजील और चीन से भी कम है। कतिपय कारणों से हमारे देश के बहुत से प्रतिभावान विद्यार्थी
अभी भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसर से वंचित हैं। अधिक वहनीयता और बेहतर पहुंच मूलमंत्र हैं। इससे उच्च शिक्षा में अधिक समावेशिता आएगी। कठिन आर्थिक पृष्ठभूमियों से आने वाले प्रतिभावान विद्यार्थियों की मदद छात्रवृत्तियों, विद्यार्थी ऋण तथा स्वयं सहायता योजनाओं
के जरिए मदद की जानी चाहिए।
9. पहुंच को बढ़ाने के लिए, हमारी संस्थाओं में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी समाधानों का प्रयोग किया जाना चाहिए। व्यापक मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के द्वारा शहरी केन्द्रों से दूर रहने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा उपलब्ध करवाने की दूरी समाप्त करने में मदद मिलेगी।
राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क जैसे सूचना और संचार प्रौद्योगिकी नेटवर्कों द्वारा व्याख्यानों और पाठ्य सामग्रियों के आदान-प्रदान से ज्ञान का विस्तार करने में सहायता मिलती है। इससे भौगोलिक रूप से दूर रहने वाले विशेषज्ञों को प्रोत्साहित करके बौद्धिक सहयोग हो सकेगा।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि यह विश्वद्यिलय 2010 से राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क पर है।
10. इन्हीं शब्दों के साथ, मैं अपनी बात समाप्त करता हूं। एक बार पुन: आप सभी को इस महत्वपूर्ण अवसर पर शुभकामनाएं देता हूं। आप सभी जीवन में उत्कृष्टता प्राप्त करें। धन्यवाद!
जयहिन्द।