देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के स्वर्ण जयंती वर्ष में मनाए जा रहे वार्षिक दीक्षांत समारोह के लिए आज यहां उपस्थित होना मेरे लिए प्रसन्नता की बात है। मैं उन सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जिन्होंने आज अपनी उपाधियां और पदक प्राप्त किए हैं।
1964 में इंदौर विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित देवी अहिल्या विश्वविद्यालय हमें महान शासक देवी अहिल्याबाई होल्कर की याद दिलाता है जो मालवा की एक दयालू शासक थीं और आज भी उन्हें अत्यधिक सम्मान दिया जाता है। विश्वविद्यालय के साथ उनका नाम जुड़ने से विश्वविद्यालय पर उच्च शिक्षा को समाज सेवा के साथ मिलाने का भारी दायित्व आ गया है।
यह कहा जाता है कि भारत गांवों में बसता है। यह बात, इस जनजातीय-ग्रामीण क्षेत्र प्रधान, मध्य प्रदेश, जिसकी 72 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में रहती है, के लिए विशेषतौर पर सच है। मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का अनुपात राष्ट्रीय स्तर की तुलना में लगभग ढाई गुना ज्यादा है। इसके अलावा, इंदौर मंडल के आठ जिलों के 54 विकास खंडों में से 40 जनजातीय विकास खंड हैं। इसका अर्थ है कि मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा की चुनौतियां राष्ट्रीय स्तर की तुलना में कहीं ज्यादा हैं। जनजातीय और ग्रामीण पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों की शिक्षा, विशेषकर उन्हें वैश्विक तौर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिए नीतियों, योजनाओं और पद्धतियों के रूप में समुचित प्रयास जरूरी हैं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय आठ जनजाति-प्रधान जिलों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है।
मित्रो, शिक्षा प्रकाश को अंधकार से, तरक्की को पिछड़ेपन से औसत से उत्कृष्टता को अलग करती है। यदि किसी निवेश का भावी प्रगति से ठोस सम्बन्ध है तो वह शिक्षा है। शिक्षा और ज्ञान की ताकत पर निर्मित देशों ने दीर्घावधि तक विकास किया है। ऐसे देशों ने संसाधन स्रोतों में बदलावों के प्रति अधिक अनुकूलन की ताकत का प्रदर्शन किया है। शिक्षा ने उन्हें संसाधनों के अभाव पर विजय प्राप्त करने तथा उच्च प्रौद्योगिकी के आधार पर अर्थव्यवस्था का निर्माण करने की क्षमता प्रदान की है। यदि भारत को विश्व का एक अग्रणी राष्ट्र बनना है तो भावी पथ एक सुदृढ़ शिक्षण प्रणाली से ही होकर जाता है।
इसलिए, सरकार नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए एक शिक्षा आयोग का गठन करना चाहती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पिछला संशोधन 1992 में किया गया था। देश ने 1992 के बाद बड़े बदलाव देखे हैं। शैक्षिक चुनौतियों को पूरा करने तथा गुणवत्ता, अनुसंधान और नवान्वेषण के मुद्दों का समाधान करने तथा ‘जनसांख्यिकीय बढ़त’ से लाभ उठाने के लिए शिक्षा को अनुकूल बनाने हेतु एक नई, व्यापक राष्ट्रीय शिक्षा नीति समय की आवश्यकता है।
भारत में जनसंख्या का दो-तिहाई हिस्सा 35 वर्ष से कम का है इसलिए युवाओं की काफी अधिक संख्या है। उनकी सही ढंग से तैयार किया जाना जरूरी है क्योंकि वे हमारा भविष्य हैं। खेद की बात है कि भारत में उच्च शिक्षा में प्रवेश 20 प्रतिशत से कम है। यह जानते हुए कि यह काफी नहीं है तथा इससे हमारी भावी पीढ़ी की क्षमता कम हो सकती है, हाल के वर्षों में उच्च शिक्षा ढांचे का विस्तार करने के लिए तीव्र प्रगति की गई है। सरकार का अब सभी राज्यों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान स्थापित करने का प्रस्ताव है।
परंतु यदि हम आज अपने देश की उच्च शिक्षा की स्थिति का ईमानदारी से विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकांश उच्च शिक्षा संस्थानों में वैश्विक बाजार के लिए स्नातक पैदा करने की गुणवत्ता की कमी है। मैं विश्वविद्यालयों की अपनी यात्राओं के दौरान दुनिया के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में भारतीय संस्थानों के प्रदर्शन के बारे में अपनी चिंताएं व्यक्त करता रहा हूं।
हमें अपने विश्वविद्यालयों को विश्व स्तरीय संस्थानों में बदलना होगा। भारतीय सभ्यता की एक दीर्घ ज्ञान परंपरा रही है। हमारे प्राचीन विश्वविद्यालय तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमापुरा और ओदांतपुरी शिक्षण की प्रख्यात पीठ थे जो विदेशी विद्वानों को आकर्षित किया करते थे। वास्तव में, ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में तक्षशिला की स्थापना से ईसा की 12वीं शताब्दी में नालंदा के पतन तक लगभग 1500 वर्षों तक भारत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी था। हमें सर्वोच्च प्राथमिकता देकर अपने देश के उच्च शिक्षा के गिरते स्तर को रोकना होगा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में हमारी अग्रता हमारे वैज्ञानिकों, विद्वानों, इंजीनियरों और डाक्टरों की योग्यता के स्तर पर निर्भर है।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि हमारे संस्थानों ने रैंकिंग प्रक्रिया को समुचित गंभीरता देना शुरू कर दिया है। पिछले वर्ष सितंबर में, एक विख्यात एजेंसी द्वारा भारतीय प्रबंधन संस्थान, कलकत्ता के वित्त मॉड्यूल को स्नातकोत्तर प्रबंधन कार्यक्रम प्रदान करने वाले बिजनेस स्कूलों में सर्वोत्तम के रूप में चुना गया था। एक अन्य प्रतिष्ठित एजेंसी द्वारा विषयवार की गई दुनिया की विश्वविद्यालय रैंकिंग में दो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों—मद्रास और बॉम्बे विश्वविद्यालय को सिविल इंजीनियरी के सर्वोच्च 50 संस्थानों में शामिल किया गया है जबकि दिल्ली और बॉम्बे इलैक्ट्रिकल इंजीनियरी के सर्वोच्च 50 संस्थानों में शामिल हैं। मैं चाहता हूं कि हमारे संस्थान इन लघु स्तरीय सफलताओं से आगे बढ़ें तथा और अधिक समग्र रैंकिंग हासिल करें।
मित्रो, शिक्षक शिक्षा की आधारशिला होते हैं। शिक्षकों की गुणवत्ता शैक्षिक स्तर को तय करती है। संकाय विकास के लिए अनेक उपायों की जरूरत होती है। शिक्षकों के रिक्त पदों को प्राथमिकता के आधार पर भरना होगा। शैक्षिक पद्धति में नई विचारशीलता और विविधता पैदा करने के लिए प्रतिभावान विदेशी शिक्षकों की नियुक्ति करनी होगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के आवासी विद्वान ‘एनकोर’ कार्यक्रम तथा संकाय पुनर्भरण कार्यक्रम का बेहतर उपयोग किया जाना चाहिए।
हमारे विश्वविद्यालयों के कुशल कामकाज को प्रभावित करने वाली बहुत सी समस्याएं सुशासन परिपाटियों के न होने से उत्पन्न होती हैं। शासन ढांचे में अधिक तीव्र और पारदर्शी निर्णय को बढ़ावा देना होगा। इस संदर्भ में, शासन तंत्र में प्रतिष्ठित पूर्व विद्यार्थियों को शामिल करने से वह गतिशीलता आएगी जिसकी हमारे संस्थानों में अक्सर कमी होती है। वर्तमान पाठ्यक्रमों की समीक्षा तथा नए पाठ्यक्रमों की शुरुआत के लिए पूर्व विद्यार्थियों की विशेषज्ञता का उपयोग किया जा सकता है।
उद्योग के साथ एक व्यापक साझीदारी निर्मित करने के लिए व्यवस्थित प्रयास करना होगा। अनुसंधान वृत्तियों और पीठों को प्रायोजित करने तथा इंटर्नशिप कार्यक्रमों के संचालन जैसे सहयोग की संभावनाएं तलाश करने के लिए उद्योग-शिक्षा संगठन की एक संस्थागत व्यवस्था आवश्यक है।
प्रौद्योगिकी ज्ञान वाहक तथा उत्कृष्ट सूचना प्रसारक है। ज्ञान संजाल बौद्धिक सहयोग में मदद करते हैं। वे भौगोलिक बाधाओं को कम कर देते हैं। अधिक शैक्षिक आदान-प्रदान के लिए प्रौद्योगिकी आधारित मीडिया का प्रभावी प्रयोग समय की मांग है। सरकार का इरादा विशाल मुक्त ऑन-लाइन पाठ्यक्रम की शुरुआत, वर्चुअल कक्षाओं की शुरुआत को बढ़ावा देना तथा एक राष्ट्रीय पुस्तकालय स्थापित करने का है।
किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय को नोबेल पुरस्कार विजेता तैयार किए हुए अब तक 80 वर्ष बीत चुके हैं। भारत में कार्यरत नोबेल पुरस्कार जीतने वाले अंतिम व्यक्ति 1930 में डॉ. सी.वी. रमन थे। डॉ. अमर्त्य सेन, डॉ. एस. चंद्रशेखर, डॉ. हरगोबिंद खुराना और डॉ. वेंकटरमन रामकृष्णन सभी भारतीय विश्वविद्यालयों के स्नातक थे परंतु उन्होंने अमरीकी विश्वविद्यालयों में कार्य करते हुए नोबेल पुरस्कार प्राप्त किए।
देवियो और सज्जनो, यदि हमें उपर्युक्त स्थिति को बदलना है तो हमें विश्वविद्यालयों के अनुसंधान की उपेक्षा रोकनी होगी। हमें अपनी शैक्षिक प्रणाली में बहुविधात्मक दृष्टिकोण अपनाने चाहिए क्योंकि अधिकांश अनुसंधान कार्यकलाप के लिए विविध विधाओं के प्रबुद्ध लोगों को शामिल करने की जरूरत है।
विद्यार्थियों और अभिभावकों को संस्थानों तथा पाठ्यक्रमों के बारे में सुविज्ञ चुनाव करने के लिए वस्तुनिष्ठ गुणवत्ता आश्वासन तंत्रों की भी आवश्यकता है। पारदर्शी और सुविज्ञ बाह्य समीक्षा प्रक्रिया के माध्यम से उच्च शिक्षा में मूल्यांकन तथा प्रमाणन गुणवत्ता आश्वासन के प्रभावी साधन हैं जिनसे भारत और विदेश के संस्थानों में विद्यार्थियों के आदान-प्रदान में सहायता मिलती है। यद्यपि भारत में प्रमाणन आवश्यक है, परंतु इसके कार्यान्वयन के संबंध में बहुत कुछ किया जाना अपेक्षित है। इसलिए, यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रमाणन परिषद द्वारा ए ग्रेड प्रदान किया गया है। मैं यह उल्लेख करना चाहूंगा कि हम हाल ही में वाशिंगटन समझौते के सदस्य बने हैं जिससे राष्ट्रों के ऐसे विश्व समूह में शामिल होने में भारत का मार्ग प्रशस्त हो गया है जिससे हमारे इंजीनियरी विद्यार्थियों को गतिशीलता के अवसर मिलेंगे।
भारत सरकार एक राष्ट्रीय अकादमिक कोष की स्थापना की प्रक्रिया में है। यह कोष विभिन्न परिषदों और विश्वविद्यालयों द्वारा जारी अकादमिक प्रमाणपत्रों के ऑनलाइन सत्यापन की सुविधा प्रदान करने के लिए अकादमिक अर्हताओं का राष्ट्रीय डॉटाबेस होगा। इससे, संस्थानों, विद्यार्थियों तथा नियोक्ताओं को अधिप्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने अथवा प्रमाण पत्रों के सत्यापन के लिए शैक्षणिक संस्थानों के पास जाने की जरूरत को खत्म करने में बहुत सहायता मिलेगी तथा संस्थानों को अपने विद्यार्थियों की अकादमिक उपलब्धियों का रिकॉर्ड बहुत लम्बे समय तक रखे रखने की जरूरत कम होगी। प्रणाली से ऑन लाइन जांच द्वारा नकली प्रमाण पत्र, अंक सूची आदि बनाने जैसा फर्जीवाड़ा भी रुक सकेगा।
देवियो और सज्जनो, विश्वविद्यालयों पर अपने विद्यार्थियों में जिज्ञासा पैदा करने तथा वैज्ञानिक मनोवृत्ति को बढ़ावा देने का दायित्व है। विद्यार्थियों तथा जमीनी नवान्वेषकों के विचारों को पंख मिलने चाहिए। ऐसे नवीन विचारों की, जिन्हें व्यवहार्य उत्पादों में विकसित किया जा सके, विश्वविद्यालयों द्वारा मानीटरिंग होनी चाहिए। कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नवान्वेषण क्लबों की स्थापना की पहल की गई है। इस तरह के क्लबों की गतिविधियों का, उस क्षेत्र में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में स्थित नवान्वेषण प्रोत्साहकों के साथ संयोजन किया जाना चाहिए। इन क्लबों के प्रोत्साहकों के साथ संयोजन से एक ऐसा ‘नवान्वेषण संजाल’ तैयार करने में सहायता मिलेगी जो अनुसंधान के उच्च केंद्रों तथा आम आदमी के बीच संबंध स्थापित करेगा। मैं देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से आग्रह करता हूं कि वह इन्दौर में इस तरह के ‘नवान्वेषण क्लब’ की स्थापना के लिए आगे आएं।
मित्रो, भारत नए अवसरों और बड़ी उपलब्धियों के दहलीज पर है। भारत द्वारा वैश्विक अग्रता प्राप्त करना अब एक कल्पना मात्र नहीं रही है। हमारे देश के शिक्षित युवाओं, आप इस उदीयमान अभिनव भारत का निर्माण करेंगे। यहां प्राप्त शिक्षा का इस्तेमाल समाज में परिवर्तन का दूत बनने के लिए करें। महात्मा गांधी के शब्दों से प्रेरणा ग्रहण करें। उन्होंने कहा था, ‘‘शिक्षा का मूल आपमें से जो सर्वोत्तम है उसे प्रकट करना है।’’ सदैव यह ध्यान रखें कि जो शानदार शिक्षा अब प्राप्त कर रहे हैं वह राज्य तथा समुदाय का योगदान है। जिस भूमि पर आपका विश्वविद्यालय खड़ा है वह समुदाय द्वारा प्रदान की गई है। इसी प्रकार, ये भवन, उनके भरे-पूरे पुस्तकालय तथा ऑनलाइन डॉटोबेस आदि उस धन से उपलब्ध हुए हैं जो राज्य ने आप में निवेश किया है। देश अपने विवविद्यालयों में इसलिए निवेश करता है क्योंकि विद्यार्थी हमारा भविष्य हैं। इसी प्रकार, विद्यार्थियों को भी, न केवल अपने खुद के और अपने परिवार के प्रति, बल्कि देश तथा इसकी जनता के प्रति भी उत्तरदायित्व पूरा करना है।
दीक्षांत समारेह किसी भी शैक्षिक संस्थान के लिए एक स्मरणीय घटना होती है। इसका बहुत महत्त्व है और यह अपने विद्यार्थियों, उनके परिवार और शिक्षकों के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव होता है। इसी दिन वर्षों के परिश्रम और लगन का सम्मान और सराहना की जाती है। विद्यार्थियो, आप ज्ञान के शस्त्र और चरित्र की शक्ति के साथ इस विश्वविद्यालय के पवित्र प्रांगण से बाहर निकलेंगे। बाहरी दुनिया में जाएं, बदलाव लाएं, अपने आसपास के लोगों के जीवन को बदलें और एक खुशहाल विश्व का निर्माण करें।
धन्यवाद,
जय हिंद!