एस.आर.एम. विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
चेन्नई, तमिलनाडु : 28.12.2012
मुझे एस.आर.एम. विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाग लेकर प्रसन्नता हो रही है। देश के कुछ अत्यंत प्रतिभावान युवाओं के बीच होना खुशी की बात है।
मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हो रही है कि एस.आर.एम. विश्वविद्यालय आज एक बहु-विधात्मक विश्वविद्यालय है, जिसमें 33000 विद्यार्थी और 2300 शिक्षक हैं और यह इंजीनियरी, प्रबंधन, चिकित्सा, विज्ञान और मानविकी में विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन कर रहा है। विद्यार्थियों के पास नैनो टैक्नोलॉजी, बायोइन्फोरमेटिक्स, जेनेटिक इंजीनियरी, सुदूर संवेदन और जी आई एस आधारित प्रणालियां, कम्प्यूटर फोरेंसिक आदि जैसे अग्रणी कार्यक्रमों को चुनने का विकल्प मौजूद है।
विश्वविद्यालय में शिवाजी गणेशन फिल्म संस्थान है जो फिल्म प्रौद्योगिकी में बी.एससी. प्रदान करता है, जो कि अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है। भारतीय प्रशासनिक सेवा कोचिंग अकादमी है, जो सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षण प्रदान करती है। सामुदायिक चिकित्सा विभाग द्वारा एक ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्र और एक शहरी स्वास्थ्य केंद्र का संचालन किया जा रहा है। यह बहुत से स्वास्थ्य शिविर आयोजित करता है तथा विश्वविद्यालय ने एक विशेष जनजातीय स्वास्थ्य परियोजना के लिए तमिलनाडु सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
मैं समझता हूं कि एस.आर.एम. विश्वविद्यालय भारत का ऐसा पहला निजी विश्वविद्यालय भी है जिसने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र (इसरो) के सहयोग से एक उपग्रह-एस आर एम सैट, की अभिकल्पना, विकास और प्रक्षेपण किया है। एस.आर.एम. सैट एक वर्ष से कक्षा में है और इसने 5173 परिक्रमाएं पूरी कर ली हैं।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि विदेशी शिक्षक, लचीले और विकल्पयुक्त पाठ्यक्रम, रोमांचक अनुसंधान और वैश्विक संबंध कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो एस.आर.एम. को विशिष्टता प्रदान करती हैं। वर्तमान प्रतिस्पर्द्धात्मक विश्व में, उच्च शिक्षा के उद्देश्य को पूरा करने के मामले में, एस.आर.एम. विश्वविद्यालय ने पिछले 27 वर्षों के दौरान उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।
देवियो और सज्जनो,
देश की आर्थिक प्रगति अनेक महत्त्वपूर्ण कारकों पर निर्भर होती है। उनमें से हमारे मानव सांधन की गुणवत्ता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उच्च शिक्षा, हमारे राष्ट्र को कुशल जनशक्ति का विशाल भंडार उपलब्ध करवाने की कुंजी है। उच्च शिक्षा न केवल एक विद्यार्थी की जीविकोपार्जन की संभावनाओं को तय करती है बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी दिशा देती है।
हमारे देश की शिक्षा प्रणाली पर मात्रा और गुणवत्ता दोनों की मांग का दबाव है। आज विश्वविद्यालयों में प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थियों की संख्या सरकारी शैक्षिक संस्थानों की क्षमता से कहीं अधिक है। हमें, उच्च शिक्षा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बहुत सारे और विश्वविद्यालयों की जरूरत है। और मात्रा के अलावा, हमें गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा।
वर्तमान में, भारत की उच्च शिक्षा के स्तर में सुधार की जरूरत है। प्राचीन काल में, हमारे यहां नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय थे, जो उत्कृष्ट शिक्षा के ऐसे अंतरराष्ट्रीय केन्द्रों के रूप में स्थापित हो गए थे जहां समूचे विश्व के विद्यार्थी अध्ययन के लिए आया करते थे। इसके विपरीत, आज बहुत से भारतीय विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना पसंद करते हैं।
हमें, अंतरराष्ट्रीय स्तर की उत्तम शिक्षा प्रदान करने वाले विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है। हमें, विश्व के सर्वोच्च विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल न होने के हमारे विश्वविद्यालयों के परिदृश्य को बदलना होगा। भारतीय विश्वविद्यालयों का लक्ष्य, विश्वस्तरीय अनुसंधान, अध्यापन और शिक्षण प्रदान करने वाले सर्वोच्च शिक्षा संस्थान बनने का होना चाहिए। असीमित मांग और सीमित संसाधनों के कारण, यह जरूरी हो गया है कि निजी क्षेत्र भी भारत में उच्च शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए अपना पूरा योगदान दे। निजी क्षेत्र ने विश्व के अन्य देशों की उच्च शिक्षा में प्रमुख भूमिका निभाई है। हारवर्ड, येल और स्टानफोर्ड सहित बहुत से सबसे अच्छे विश्वविद्यालय निजी क्षेत्र के प्रयासों का परिणाम हैं। फिर ऐसा कोई कारण नहीं है कि भारत का निजी सेक्टर भी इसी तरह के परिणाम क्यों नहीं प्राप्त कर सकता।
भारत में, विद्यार्थी और अभिभावक अक्सर निजी विश्वविद्यालयों के प्रति सशंकित रहते हैं। वे अधिकतर नवनिर्मित निजी विश्वविद्यालयों के मुकाबले पुराने और स्थापित सरकारी विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करना पसंद करते हैं। लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए, निजी विश्वविद्यालयों को निरंतर स्वयं को साबित करना होगा क्योंकि उनको इस बात का लाभ नहीं मिल पाएगा कि वे पुराने हैं। उन्हें विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य का वायदा करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अपने सभी वायदे पूरा करें। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि यह विश्वविद्यालय अपने स्नातकों को बेहतर नौकरी दिलाने में सफल रहा है। मैं इसके लिए विद्यार्थियों और विश्वविद्यालयों को बधाई देते हुए यह ध्यान दिलाना चाहूंगा कि विश्वविद्यालयों को नौकरी दिलाने से आगे भी सोचना चाहिए। विश्वविद्यालयों को, देशवासियों को आश्वस्त करना चाहिए कि वे शिक्षा का कार्य, निजी लाभ के लिए नहीं बल्कि जनसेवा के लिए कर रहे हैं। जैसा कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने कहा है कि विश्वविद्यालयों को केवल पुरुषों व महिलाओं को इंजीनियर, वैज्ञानिक, डॉक्टर, व्यापारी, धर्मशास्त्री ही नहीं बल्कि ऐसे उच्च चरित्र, ईमानदार और सम्मानित व्यक्तियों के रूप में तैयार करना होगा जो अपने आचरण से यह दिखाएं कि वे एक महान विश्वविद्यालय से निकले हैं। यह सही है कि वित्तीय संसाधन, सभी विश्वविद्यालयों के लिए एक महत्त्वपूर्ण विषय है। परंतु इसके साथ ही एक विश्व स्तरीय संस्थान के निर्माण करने और ऐसे युवा लोगों को तैयार करने की संकल्पना होनी चाहिए जो विश्व को हम सभी के लिए एक बेहतर स्थान के रूप में बदलेंगे।
स्वतंत्र भारत में, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और राजनीतिक लोकतंत्र में उच्च शिक्षा ने उल्लेखनीय योगदान किया है। परंतु इस मोड़ पर, एक गंभीर चिंता का विषय मौजूद है। हम जब बारहवीं पंचवर्षीय योजना के मुहाने पर खड़े हैं, प्रासंगिक शिक्षा की गुणवत्ता और उपलब्धता की चुनौतियां बनी हुई हैं। पाठ्यक्रमों के नियमित संशोधन और उन्नयन द्वारा पाठ्यक्रम सुधार, सेमेस्टर प्रणाली की शुरुआत, चयन आधारित क्रेडिट प्रणाली की शुरुआत और परीक्षा सुधारों को देशभर के बहुत से उच्च शिक्षा संस्थानों में लागू किया जाना अभी बाकी है। यह स्पष्ट और प्राय: सर्वसम्मत विचार है कि उच्च शिक्षा पर एक व्यवस्थित पुनर्विचार करने की जरूरत है ताकि भारत अकादमिक स्तर में कमी किए बिना ज्यादा संख्या में लोगों को शिक्षित कर सके।
हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार व बदलाव का उद्देश्य विस्तार, उत्कृष्टता और समावेशिता होना चाहिए। मैं समझता हूं कि आज पांच में से चार छात्र निजी सेक्टर के तहत व्यावसायिक उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। तथापि शिक्षा का स्तर, प्रत्येक संस्थान में अलग-अलग होता है। यह आवश्यक है कि निजी क्षेत्र में, बेहतर सेवा उपलब्धता के लिए एक पारदर्शी ढांचा निर्मित किया जाए। उच्च शिक्षा में गुणवत्ता सुधार, न्यूनतम स्तर सुनिश्चित करने तथा उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए विनियामक तंत्र को सभी शैक्षणिक संस्थानों के प्रत्यायन में सहयोग करना चाहिए जिसमें प्रोत्साहनों और परिणामों का स्पष्ट उल्लेख हो।
अच्छे शिक्षकों की कमी एक गंभीर चिंता का विषय है। हालांकि अपेक्षित संख्या में अच्छे शिक्षक रातों-रात उपलब्ध नहीं करवाए जा सकते परंतु हमें प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षण और सहयोगात्मक सूचना व संचार प्रौद्योगिकियों जैसी नवान्वेषी शिक्षण पद्धतियों का प्रयोग करके इस समस्या को दूर करना होगा। हमारे शिक्षकों को अधिक संख्या में पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों और सेमिनारों में भेजा जाना चाहिए ताकि वे अपनी-अपनी विधाओं में नवीनतम अवधारणाओं से परिचित रहें।
एस.आर.एम. विश्वविद्यालय ने निजी क्षेत्र में उत्तम उच्च शिक्षा प्रदान करके ख्याति अर्जित की है। अब इसे शिक्षण व पाठ्यक्रम के अपने कुछ नवीन और अनुकरणीय मॉडलों को देश के अन्य संस्थाओं तक पहुंचाने के प्रयास करने चाहिए। इसके द्वारा स्थापित अंतरराष्ट्रीय परामर्शी बोर्ड, जो कि अनुसंधान, पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति पर विश्वविद्यालय को सलाह देता है तथा कारपोरेट परामर्शी बोर्ड, जो कि उद्योग की जरूरतों के आधार पर इसके इंजीनियरी और प्रबंधन कार्यक्रमों का मूल्यांकन करता है, ऐसे महत्त्वपूर्ण नवान्वेषण हैं जिन्हें दूसरे संस्थानों द्वारा भी अपनाया जाना चाहिए। एस.आर.एम. विश्वविद्यालय द्वारा नोबेल पुरस्कार विजेताओं से अपने विद्यार्थियों और शिक्षकों को मिलवाने के अवसर प्रदान का कार्यक्रम भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
मैं, एस.आर.एम. विश्वविद्यालय के कुलाधिपति, कुलपति, शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कार्मचारियों को उनकी उपलब्धियों के लिए बधाई देता हूं और कामना करता हूं कि यह विश्वविद्यालय युवक-युवतियों को अपने पसंदीदा क्षेत्रों में अग्रणी के रूप में उभरने के लिए तैयार करने मंे निरंतर सफलता अर्जित करे। जैसा कि मैंने पहले जिक्र किया है, शिक्षा को चरित्र निर्माण और सामाजिक विकास की सीढ़ी समझा जाना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि आप सभी भविष्य में मेहनत से कार्य करेंगे और राष्ट्र निर्माण में सार्थक योगदान देंगे। मैं आज स्नातक बनने जा रहे प्रत्येक विद्यार्थी से यह याद रखने का आग्रह करता हूं कि जीवन में आपका मिशन, हर एक की आंख से हर एक आँसू को पोंछना है, जैसा कि हमारे राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी ने आह्वान किया था।
अंत में, मैं एक बार पुन: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के दीक्षांत संबोधन में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी द्वारा कहे गए शब्दों को उद्धृत करना चाहूंगा, ‘‘अपने पूरे जीवन में अध्ययन जारी रखें। न्यायवादी बनें, किसी से न डरें। केवल गलत और हेय कार्य से ही डरें। जो सही है उसके लिए लड़ें। मानव सेवा से प्रेम करें। मातृभूमि से प्रेम करें। जन-कल्याण को बढ़ावा दें। जब भी अवसर मिले, भलाई करें। जो भी दे सकें उसे देने में प्रसन्नता का अनुभव करें।’’
धन्यवाद,
जय हिंद!
मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हो रही है कि एस.आर.एम. विश्वविद्यालय आज एक बहु-विधात्मक विश्वविद्यालय है, जिसमें 33000 विद्यार्थी और 2300 शिक्षक हैं और यह इंजीनियरी, प्रबंधन, चिकित्सा, विज्ञान और मानविकी में विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन कर रहा है। विद्यार्थियों के पास नैनो टैक्नोलॉजी, बायोइन्फोरमेटिक्स, जेनेटिक इंजीनियरी, सुदूर संवेदन और जी आई एस आधारित प्रणालियां, कम्प्यूटर फोरेंसिक आदि जैसे अग्रणी कार्यक्रमों को चुनने का विकल्प मौजूद है।
विश्वविद्यालय में शिवाजी गणेशन फिल्म संस्थान है जो फिल्म प्रौद्योगिकी में बी.एससी. प्रदान करता है, जो कि अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है। भारतीय प्रशासनिक सेवा कोचिंग अकादमी है, जो सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षण प्रदान करती है। सामुदायिक चिकित्सा विभाग द्वारा एक ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्र और एक शहरी स्वास्थ्य केंद्र का संचालन किया जा रहा है। यह बहुत से स्वास्थ्य शिविर आयोजित करता है तथा विश्वविद्यालय ने एक विशेष जनजातीय स्वास्थ्य परियोजना के लिए तमिलनाडु सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
मैं समझता हूं कि एस.आर.एम. विश्वविद्यालय भारत का ऐसा पहला निजी विश्वविद्यालय भी है जिसने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र (इसरो) के सहयोग से एक उपग्रह-एस आर एम सैट, की अभिकल्पना, विकास और प्रक्षेपण किया है। एस.आर.एम. सैट एक वर्ष से कक्षा में है और इसने 5173 परिक्रमाएं पूरी कर ली हैं।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि विदेशी शिक्षक, लचीले और विकल्पयुक्त पाठ्यक्रम, रोमांचक अनुसंधान और वैश्विक संबंध कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो एस.आर.एम. को विशिष्टता प्रदान करती हैं। वर्तमान प्रतिस्पर्द्धात्मक विश्व में, उच्च शिक्षा के उद्देश्य को पूरा करने के मामले में, एस.आर.एम. विश्वविद्यालय ने पिछले 27 वर्षों के दौरान उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।
देवियो और सज्जनो,
देश की आर्थिक प्रगति अनेक महत्त्वपूर्ण कारकों पर निर्भर होती है। उनमें से हमारे मानव सांधन की गुणवत्ता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उच्च शिक्षा, हमारे राष्ट्र को कुशल जनशक्ति का विशाल भंडार उपलब्ध करवाने की कुंजी है। उच्च शिक्षा न केवल एक विद्यार्थी की जीविकोपार्जन की संभावनाओं को तय करती है बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी दिशा देती है।
हमारे देश की शिक्षा प्रणाली पर मात्रा और गुणवत्ता दोनों की मांग का दबाव है। आज विश्वविद्यालयों में प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थियों की संख्या सरकारी शैक्षिक संस्थानों की क्षमता से कहीं अधिक है। हमें, उच्च शिक्षा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बहुत सारे और विश्वविद्यालयों की जरूरत है। और मात्रा के अलावा, हमें गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा।
वर्तमान में, भारत की उच्च शिक्षा के स्तर में सुधार की जरूरत है। प्राचीन काल में, हमारे यहां नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय थे, जो उत्कृष्ट शिक्षा के ऐसे अंतरराष्ट्रीय केन्द्रों के रूप में स्थापित हो गए थे जहां समूचे विश्व के विद्यार्थी अध्ययन के लिए आया करते थे। इसके विपरीत, आज बहुत से भारतीय विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना पसंद करते हैं।
हमें, अंतरराष्ट्रीय स्तर की उत्तम शिक्षा प्रदान करने वाले विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है। हमें, विश्व के सर्वोच्च विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल न होने के हमारे विश्वविद्यालयों के परिदृश्य को बदलना होगा। भारतीय विश्वविद्यालयों का लक्ष्य, विश्वस्तरीय अनुसंधान, अध्यापन और शिक्षण प्रदान करने वाले सर्वोच्च शिक्षा संस्थान बनने का होना चाहिए। असीमित मांग और सीमित संसाधनों के कारण, यह जरूरी हो गया है कि निजी क्षेत्र भी भारत में उच्च शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए अपना पूरा योगदान दे। निजी क्षेत्र ने विश्व के अन्य देशों की उच्च शिक्षा में प्रमुख भूमिका निभाई है। हारवर्ड, येल और स्टानफोर्ड सहित बहुत से सबसे अच्छे विश्वविद्यालय निजी क्षेत्र के प्रयासों का परिणाम हैं। फिर ऐसा कोई कारण नहीं है कि भारत का निजी सेक्टर भी इसी तरह के परिणाम क्यों नहीं प्राप्त कर सकता।
भारत में, विद्यार्थी और अभिभावक अक्सर निजी विश्वविद्यालयों के प्रति सशंकित रहते हैं। वे अधिकतर नवनिर्मित निजी विश्वविद्यालयों के मुकाबले पुराने और स्थापित सरकारी विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करना पसंद करते हैं। लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए, निजी विश्वविद्यालयों को निरंतर स्वयं को साबित करना होगा क्योंकि उनको इस बात का लाभ नहीं मिल पाएगा कि वे पुराने हैं। उन्हें विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य का वायदा करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अपने सभी वायदे पूरा करें। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि यह विश्वविद्यालय अपने स्नातकों को बेहतर नौकरी दिलाने में सफल रहा है। मैं इसके लिए विद्यार्थियों और विश्वविद्यालयों को बधाई देते हुए यह ध्यान दिलाना चाहूंगा कि विश्वविद्यालयों को नौकरी दिलाने से आगे भी सोचना चाहिए। विश्वविद्यालयों को, देशवासियों को आश्वस्त करना चाहिए कि वे शिक्षा का कार्य, निजी लाभ के लिए नहीं बल्कि जनसेवा के लिए कर रहे हैं। जैसा कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने कहा है कि विश्वविद्यालयों को केवल पुरुषों व महिलाओं को इंजीनियर, वैज्ञानिक, डॉक्टर, व्यापारी, धर्मशास्त्री ही नहीं बल्कि ऐसे उच्च चरित्र, ईमानदार और सम्मानित व्यक्तियों के रूप में तैयार करना होगा जो अपने आचरण से यह दिखाएं कि वे एक महान विश्वविद्यालय से निकले हैं। यह सही है कि वित्तीय संसाधन, सभी विश्वविद्यालयों के लिए एक महत्त्वपूर्ण विषय है। परंतु इसके साथ ही एक विश्व स्तरीय संस्थान के निर्माण करने और ऐसे युवा लोगों को तैयार करने की संकल्पना होनी चाहिए जो विश्व को हम सभी के लिए एक बेहतर स्थान के रूप में बदलेंगे।
स्वतंत्र भारत में, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और राजनीतिक लोकतंत्र में उच्च शिक्षा ने उल्लेखनीय योगदान किया है। परंतु इस मोड़ पर, एक गंभीर चिंता का विषय मौजूद है। हम जब बारहवीं पंचवर्षीय योजना के मुहाने पर खड़े हैं, प्रासंगिक शिक्षा की गुणवत्ता और उपलब्धता की चुनौतियां बनी हुई हैं। पाठ्यक्रमों के नियमित संशोधन और उन्नयन द्वारा पाठ्यक्रम सुधार, सेमेस्टर प्रणाली की शुरुआत, चयन आधारित क्रेडिट प्रणाली की शुरुआत और परीक्षा सुधारों को देशभर के बहुत से उच्च शिक्षा संस्थानों में लागू किया जाना अभी बाकी है। यह स्पष्ट और प्राय: सर्वसम्मत विचार है कि उच्च शिक्षा पर एक व्यवस्थित पुनर्विचार करने की जरूरत है ताकि भारत अकादमिक स्तर में कमी किए बिना ज्यादा संख्या में लोगों को शिक्षित कर सके।
हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार व बदलाव का उद्देश्य विस्तार, उत्कृष्टता और समावेशिता होना चाहिए। मैं समझता हूं कि आज पांच में से चार छात्र निजी सेक्टर के तहत व्यावसायिक उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। तथापि शिक्षा का स्तर, प्रत्येक संस्थान में अलग-अलग होता है। यह आवश्यक है कि निजी क्षेत्र में, बेहतर सेवा उपलब्धता के लिए एक पारदर्शी ढांचा निर्मित किया जाए। उच्च शिक्षा में गुणवत्ता सुधार, न्यूनतम स्तर सुनिश्चित करने तथा उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए विनियामक तंत्र को सभी शैक्षणिक संस्थानों के प्रत्यायन में सहयोग करना चाहिए जिसमें प्रोत्साहनों और परिणामों का स्पष्ट उल्लेख हो।
अच्छे शिक्षकों की कमी एक गंभीर चिंता का विषय है। हालांकि अपेक्षित संख्या में अच्छे शिक्षक रातों-रात उपलब्ध नहीं करवाए जा सकते परंतु हमें प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षण और सहयोगात्मक सूचना व संचार प्रौद्योगिकियों जैसी नवान्वेषी शिक्षण पद्धतियों का प्रयोग करके इस समस्या को दूर करना होगा। हमारे शिक्षकों को अधिक संख्या में पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों और सेमिनारों में भेजा जाना चाहिए ताकि वे अपनी-अपनी विधाओं में नवीनतम अवधारणाओं से परिचित रहें।
एस.आर.एम. विश्वविद्यालय ने निजी क्षेत्र में उत्तम उच्च शिक्षा प्रदान करके ख्याति अर्जित की है। अब इसे शिक्षण व पाठ्यक्रम के अपने कुछ नवीन और अनुकरणीय मॉडलों को देश के अन्य संस्थाओं तक पहुंचाने के प्रयास करने चाहिए। इसके द्वारा स्थापित अंतरराष्ट्रीय परामर्शी बोर्ड, जो कि अनुसंधान, पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति पर विश्वविद्यालय को सलाह देता है तथा कारपोरेट परामर्शी बोर्ड, जो कि उद्योग की जरूरतों के आधार पर इसके इंजीनियरी और प्रबंधन कार्यक्रमों का मूल्यांकन करता है, ऐसे महत्त्वपूर्ण नवान्वेषण हैं जिन्हें दूसरे संस्थानों द्वारा भी अपनाया जाना चाहिए। एस.आर.एम. विश्वविद्यालय द्वारा नोबेल पुरस्कार विजेताओं से अपने विद्यार्थियों और शिक्षकों को मिलवाने के अवसर प्रदान का कार्यक्रम भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
मैं, एस.आर.एम. विश्वविद्यालय के कुलाधिपति, कुलपति, शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कार्मचारियों को उनकी उपलब्धियों के लिए बधाई देता हूं और कामना करता हूं कि यह विश्वविद्यालय युवक-युवतियों को अपने पसंदीदा क्षेत्रों में अग्रणी के रूप में उभरने के लिए तैयार करने मंे निरंतर सफलता अर्जित करे। जैसा कि मैंने पहले जिक्र किया है, शिक्षा को चरित्र निर्माण और सामाजिक विकास की सीढ़ी समझा जाना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि आप सभी भविष्य में मेहनत से कार्य करेंगे और राष्ट्र निर्माण में सार्थक योगदान देंगे। मैं आज स्नातक बनने जा रहे प्रत्येक विद्यार्थी से यह याद रखने का आग्रह करता हूं कि जीवन में आपका मिशन, हर एक की आंख से हर एक आँसू को पोंछना है, जैसा कि हमारे राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी ने आह्वान किया था।
अंत में, मैं एक बार पुन: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के दीक्षांत संबोधन में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी द्वारा कहे गए शब्दों को उद्धृत करना चाहूंगा, ‘‘अपने पूरे जीवन में अध्ययन जारी रखें। न्यायवादी बनें, किसी से न डरें। केवल गलत और हेय कार्य से ही डरें। जो सही है उसके लिए लड़ें। मानव सेवा से प्रेम करें। मातृभूमि से प्रेम करें। जन-कल्याण को बढ़ावा दें। जब भी अवसर मिले, भलाई करें। जो भी दे सकें उसे देने में प्रसन्नता का अनुभव करें।’’
धन्यवाद,
जय हिंद!