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संघ लोक सेवा आयोग के चतुर्थ स्थापना दिवस के अवसर पर ‘शासन और लोक सेवा’ विषय पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 29.11.2013



1. संघ लोक सेवा आयेग के चतुर्थ स्थापना दिवस पर व्याख्यान देने के लिए अति विशिष्टसभा के बीच उपस्थित होना वास्तव में मेरा सौभाग्य है। इस अवसर पर शासन और लोक सेवा के बारे में अपने विचार आपके साथ बांटने का मौका हासिल करके मुझे खुशी हो रही है।

2. एक दक्षतापूर्वक संचालित लोक सेवा वास्तव में, सुशासन तथा प्रतिसंवेदी लोकसेवा प्रदान करने के लिए ढांचा होता है। स्वतंत्रता से बहुत पहले से ही गुणवत्ता आधारित सिविल सेवाओं के सजृन के लिए एक स्वायत्त निकाय की आवश्यकता महसूस की गई थी। 1926 में सर रोस बार्कर की अध्यक्षता में पहले लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी। इस आयोग का सीमित परामर्शी कार्य था। इसके पश्चात, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 के तहत संघीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी। इसमें प्रांतीय स्तर पर लोक सेवा आयोगों के गठन के प्रावधान निहित थे। भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, भारत के संविधान के अनुच्छेद 315 के तहत संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी। संविधान सभा ने संघ लोक सेवा आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने में एक प्रमुख और दूरदर्शी भूमिका निभाई क्योंकि इसने सिविल सेवाओं के दक्षतापूर्ण ढंग से संचालित संवर्गों पर आधारित लोक प्रशासन उपलबध करने के लिए एक स्वायत्त निकाय की आवश्यकता महसूस की थी।

3. इस निकाय के महत्त्व पर बोलते हुए, पंडित हृदय नाथ कुंजरू ने कहा था, ‘‘इसका उद्देश्य, जैसा कि अनेक वक्ताओं ने कहा है, राष्ट्र के लिए ऐसे योग्य लोक सेवक तैयार करना है जो सभी लोगों की समान सेवा करें तथा सभी समुदायों और कुल मिलाकर राष्ट्र के हितों का सदैव ध्यान रखें।’’

4. संघ लोक सेवा आयोग प्रशासनिक आचार की पौधशाला है। यह राष्ट्र की सेवा के लिए अधिकारियों के तौर पर श्रेष्ठ पुरुषों और महिलाओं का चयन करने वाली मातृ संस्था है। सरकार के मानव संसाधन प्रबंधन में इसकी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसे लाखों अभ्यर्थियों में से सर्वोत्तम उम्मीदवारों की अनुशंसा करनी होती है। संघ लोक सेवा आयोग ने वर्षों के दौरान, एक ऐसी सिविल सेवा तैयार करने में मदद की है जो विविधतापूर्ण और प्रतिनिधित्वकारी है और हमारे देश की बहुलवादी परंपराओं को प्रतिबिम्ब करती है।

देवियो और सज्जनो,

5. सिविल सेवा हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह आर्थिक विकास और सामाजिक बदलाव के साधन के तौर पर भी कार्य करती है। यह राष्ट्रीय विकास के लिए नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन में सरकार की मदद करती है। राष्ट्र निर्माण के कार्यों और चुनौतियों के लिए सिविल सेवकों और जनता के बीच निकट का संवाद और सहयोग आवश्यक है। यह सिविल सेवाओं को सर्वप्रथम जनता के प्रति प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता पर बल देती है।

6. स्वतंत्रता के बाद साढ़े छह दशक के दौरान, इस राष्ट्र ने तेजी से प्रगति की है। आज, भारत राजनीतिक और आर्थिक विकास के मामले में वैश्विक नेतृत्व के मुहाने पर खड़ा हुआ है। आर्थिक सफलता के परिणामस्वरूप राष्ट्र की अपेक्षाएं बहुत अधिक बढ़ गई हैं। वैश्विक रुझानों के साथ चलने तथा अर्थव्यवस्था के खुलेपन के कारण सिविल सेवाओं के समक्ष विविध चुनौतियां पैदा हो गई हैं।

7. हमारे विकास कार्यक्रमों की सफलता लोक प्रशासन की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। लोग अपनी जरूरतों की कारगर ढंग से पूर्ति के लिए पारदर्शी तथा पेशेवर रूप से दक्ष प्रशासन चाहते हैं। वे अपनी शिकायतों का त्वरित समाधान चाहते हैं। वे चाहते हैं कि कल्याणकारी उपायों का लाभ बिना रुकावट निर्धन से निर्धन व्यक्ति तक पहुंचे। इसके लिए सुशासन की व्यवस्था अपनाकर सेवा सुपुर्दगी में सुधार की जरूरत है। आर्थिक विकास, समता तथा समाज के विभिन्न वर्गों की सामाजिक सहभागिता के लिए शासन अत्यावश्यक है। निष्पक्ष तथा अराजनीतिक नौकरशाही से शासन मजबूत होता है तथा इससे आर्थिक विकास और सामाजिक बदलाव की दिशा में योगदान मिलता है।

8. सुशासन शब्द लगभग दो दशक पूर्व विकास शब्दकोश में सामने आया था। यद्यपि यह अवधारणा प्राचीनकाल से प्रचलित रही है। प्राचीन ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में कौटिल्य ने बल देते हुए कहा था, ‘‘प्रजा की खुशहाली राजा की खुशहाली है; उनकी भलाई ही उसकी भलाई है, उसकी व्यक्तिगत भलाई उसकी सभी भलाई नहीं है, बल्कि उसकी प्रजा की भलाई ही सच्ची भलाई है। इसलिए राज्य को अपनी प्रजा की समृद्धि और कल्याण के लिए कार्य करने के प्रति सक्रिय रहना चाहिए।’’ सुशासन के मूलभूत तत्त्व एक मजबूत और समृद्ध भारत अथवा पूर्ण स्वराज की महात्मा गांधी की संकल्पना का आधार निर्मित करते हैं।

9. विभिन्न देश सुशासन को उच्च प्राथमिकता प्रदान कर रहे हैं क्योंकि इसका सामाजिक कल्याण और समावेशी विकास के साथ अनन्य संबंध है। सुशासन का अभाव समाज में बहुत सी खामियों का मूल कारण माना गया है। यह नागरिकों को उनके सामाजिक तथा आर्थिक अधिकारों से वंचित करता है। कानून का शासन, सहभागितापूर्ण निर्णय लेने का ढांचा, पारदर्शिता, जवाबदेही, प्रतिसंवेदना, समता तथा समावेशिता जेसे मूलभूत मानदंड सुशासन की विशेषता होते हैं। उन्होंने कहा कि देश का लोक प्रशासन इन्हीं सिद्धांतों पर संचालित होना चाहिए। इसके लिए लोक सेवाओं के नजरिए के पुन: अभिविन्यास की जरूरत है।

देवियो और सज्जनो,

10. शासन के स्तर में सुधार के लिए सक्रिय उपायों की जरूरत है। शासन और प्रशासनिक सुधार एक विकासशील प्रक्रिया है जिसके लिए सेवा के अंतिम प्राप्तकर्ता के साथ निरंतर संवाद की आवश्यकता है। प्रशासनिक सुधार आयोग ने बेहतर शासन की रूपरेखा उपलब्ध कराई है।

11. पारदर्शिता और जवाबदेही सुशासन के दो प्रमुख तत्त्व हैं। पारदर्शिता का संबंध जनसाधारण को सूचना प्रदान करने और सरकारी संस्थाओं के कामकाज की स्पष्टता से है। पारदर्शिता से बेहतर पूर्वानुमान होता है क्योंकि इससे सरकारी संगठनों को अधिक निष्पक्षता से कार्य करने में मदद मिलती है। इससे शासन प्रक्रिया में प्रभावी रूप से हिस्सा लेने के लिए जनसामान्य समर्थ और प्रोत्साहित भी होता है। सूचना का अधिकार अधिनियम ने जनता की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रशासनिक तंत्र को अधिक प्रतिसंवेदी और कुशल बना दिया है। विकास के नजरिए में एक बड़ा बदलाव आया है। कानूनी गारंटी द्वारा हकदारी प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाकर नागरिकों को खाद्य, शिक्षा और रोजगार सुरक्षा प्रदान की गई है। इन नए प्रयासों को अमल में लाने के लिए सुदृढ़ सुपर्दगी तंत्रों की जरूरत है। जनवरी, 2013 में शुरू की गई प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना में, अधिक पारदर्शिता लाने और लक्ष्य के बेहतर चयन, अपव्यय को समाप्त करने और कुशलता बढ़ाने के लिए आधार प्रणाली का लाभ उठाया गया है। वस्तुओं और सेवाओं की समयबद्ध उपलब्धता के लिए नागरिकों के अधिकार तथा उनकी शिकायतों के निवारण विधेयक, 2011 में नागरिकों द्वारा समयबद्ध सेवाएं प्राप्त करने की संकल्पना की गई है। यह सेवा सुपुर्दगी में सुधार के लिए एक अधिक प्रतिसंवेदी प्रशासन निर्मित करने में मदद करेगा।

12. ई-शासन ने प्रशासन के प्रति लोगों के नजरिए को बदलने में मदद की है। सरकारी सेवाओं के कंप्यूटरीकरण ने सूचनाओं का प्रसार सुगम बना दिया है। यह भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन, कानून और व्यवस्था के प्रबंधन, पेंशन संवितरण और जन सूचना प्रणालियों, विशेषकर स्वास्थ्य तथा रेलवे से सम्बन्धित क्षेत्रों में सफल रहा है। इंटरनेट के अधिकाधिक प्रयोग ने हमारे देश के सभी क्षेत्रों को मुख्यधारा में लाने में सहायता की है।

13. परंतु, अनेक मामलों में सफलता के बावजूद, हमारे देश की शासन प्रणाली के समक्ष अभी बहुत सी चुनौतियां हैं। भ्रष्टाचार एक बड़ा कारण है जो अर्थव्यवस्था के कुशल कार्य प्रदर्शन को बाधित करता है। सेवाओं की सुपुर्दगी में आने वाली रुकावटों को समाप्त करना होगा। निर्णय लेने के लिए गैर-स्वविवेक का नजरिया अपनाना और प्रयोक्ताओं के साथ दो तरफा संवाद शुरू करना जरूरी है।

देवियो और सज्जनो,

14. यदि हम अपने देश को तेजी से विकसित करना चाहते हैं तो हम निर्णय लेने में देरी का जोखिम नहीं उठा सकते। मेरे कहने का अर्थ यह नहीं है कि निर्णय जल्दबाजी में लिए जाएं। परंतु निर्णय लेने में लम्बा समय लेना या निर्णय न लेना स्वीकार्य नहीं है। अपनी सर्वोत्तम योग्यता के साथ तथ्यों, आंकड़ों और वास्तविक मूल्यांकन पर आधारित बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय सुशासन के लिए अनिवार्य शर्त है।

15. भारत के लिए वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी शासन के माडॅल की दिशा में बढ़ने के लिए लोक सेवाओं को बहुत कुछ करना होगा। हमें अपने लोक प्रशासन को एक गतिशील और परिणामोन्मुख नौकरशाही में बदलना होगा। कार्य निष्पादन पर निगरानी रखने और उसे बेहतर बनाने के लिए सरकारी विभागों और अधिकारियों के लिए उद्देश्यपूर्ण लक्ष्यों की शुरुआत से मुझे प्रसन्नता हुई है।

16. शासन एक समग्र दृष्टिकोण है जिसमें न्याय प्रदान करने सहित, राज्य के सभी स्तंभ शामिल होते हैं। न्यायिक सुधार की आवश्यकता तथा न्यायालय में लंबित मामलों के समाधान के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के अधिक प्रयोग जैसे उपायों की शुरुआत बहुत जरूरी है। बेहतर शासन के लिए कानूनों को सरल बनाना भी आवश्यक है।

देवियो और सज्जनो,

17. पिछले वर्षों के दौरान, सिविल सेवाओं के सम्मुख चुनौतियां कई गुना बढ़ गई हैं और उनका रूप बहुआयामी हो गया है। मुझे प्रसन्नता है कि संघ लोक सेवा आयोग ने अधिक प्रतिसंवेदी और आधुनिक सिविल सेवाएं निर्मित करने के उपाय के तौर पर सिविल सेवकों की भर्ती की प्रक्रिया में सुधारों की शुरुआत की है। इन सुधारों से विविध पृष्ठभूमियों से आने वाले अभ्यर्थियों के लिए बराबरी के अवसर मुहैया हो पाएंगे। अब आचार और नैतिक संदर्भों में निर्णय क्षमता के आधार पर नई चुनौतियों से निपटने की उम्मीदवारों की योग्यता के मूल्यांकन पर ध्यान दिया जा रहा है।

18. संघ लोक सेवा आयोग ने हमारे लोक प्रशासन की आधारशिला प्रदान करने में राष्ट्र की असाधारण सेवा की है। मैं, इस अवसर पर इस संस्था और यहां कार्यरत लोगों को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। परंतु लोगों की बढ़ती आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए सेवा सुपुर्दगी में व्यवस्थित और निरंतर सुधार की सदैव गुंजायश बनी रहती है। राष्ट्र के बेहतर शासन और प्रगति के लिए सिविल सेवकों में लोक सेवा की भावना पैदा करना सबसे महत्वपूर्ण कार्य होगा। इन्हीं शब्दों के साथ, मैं अंत में एक बार पुन: इस मंच पर आमंत्रित करने के लिए संघ लोक सेवा आयोग को धन्यवाद अदेता हूं। मैं आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिंद!