मुझे आज इस गरिमापूर्ण सदन को संबोधित करने के लिए यहां उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है।
हिमालय की तलहटी में बसे हुए, अरुणाचल प्रदेश राज्य ने भारतीय जनमानस में सदैव एक विशिष्ट स्थान बनाए रखा है। इस राज्य के प्राकृतिक सौंदर्य तथा इसकी सांस्कृतिक, धार्मिक और जनता की विविधता ने इसे भारत संघ में एक विशेष स्वरूप प्रदान किया है।
अरुणाचल, पूर्वोत्तर क्षेत्र में क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़ा राज्य है जिसका 82 प्रतिशत हिस्सा हरे-भरे वनों से ढका हुआ है। इस राज्य में 26 प्रमुख जनजातियां, 110 उप जनजातियां रहती हैं जो अलग-अलग बोलियां बोलती हैं। इसी के साथ इस राज्य का जनसंख्या घनत्व 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है, जो देश में सबसे कम है।
अरुणाचल प्रदेश में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व के स्थलों की बहुतायत है। इसका उल्लेख पुराणों और महाभारत में भी मिलता है। यह माना जाता है कि यहां पर ऋषि परशुराम ने अपने पापों से छुटकारा पाया, ऋषि व्यास ने तपस्या की, राजा भीष्मक ने अपने राज्य की स्थापना की तथा भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी रुक्मिणी से विवाह किया। अरुणाचल प्रदेश में 400 वर्ष पुराना तवांग बौद्ध मठ है तथा यहीं पर छठे दलाई लामा त्सांग्यांग ग्यात्सो का जन्म हुआ था। अरुणाचल प्रदेश प्रकृति का खजाना है तथा यहां 500 किस्म के ऑर्किड, 500 किस्म के देशी औषधीय पौधे, 150 किस्म के बुरांश पादप, तथा 60 किस्म के देशी बांस पाए जाते हैं। इस राज्य में पाए जाने वाले समृद्ध वनस्पति तथा वन्य जीव जैविक विविधता का विशाल परिदृश्य प्रस्तुत करते हैं।
मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि इस विधान सभा ने पिछले वर्षों के दौरान भूमि सुधार, शिक्षा, सामाजिक कल्याण, स्वास्थ्य, वन एवं पर्यावरण संरक्षण, पंचायती राज, नगर निगम आदि के क्षेत्र में कई विधायी पहलें की हैं। पिछले 38 वर्षों के दौरान इस विधानसभा के मार्गदर्शन में तेज तथा समावेशी विकास की दिशा में विभिन्न सरकारों द्वारा जोर दिया गया उसके परिणामस्वरूप जीव स्तर में काफी सुधार आया है। आजादी के समय लगभग शून्य साक्षरता की दर से आरंभ होकर यह राज्य शीघ्र ही राष्ट्रीय औसत तक पहुंचने वाला है। 31 जनवरी, 2008 को प्रधानमंत्री द्वारा घोषित पैकेज का तेजी से कार्यान्वयन हो रहा है। यह खुशी की बात है कि कुछ ही महीनों में राज्य के लोगों को राज्य की राजधानी में अपनी पहली रेल उपलब्ध होगी। पिछले कुछ वर्षों के दौरान अरुणाचल प्रदेश की बहुत सी उपलब्धियों के लिए मैं आप सभी को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।
अरुणाचल प्रदेश में हर चुनाव में तुलनात्मक रूप से मतदाताओं का ऊंचा प्रतिशत रहा है। इससे राज्य की जनता की रुचि तथा उसकी राजनीतिक जागरूकता का पता चलता है। यह बहुत उत्साहवर्धक है तथा इससे प्रतिनिधित्वात्मक लोकतंत्र के विकास को और प्रोत्साहन मिलता है।
हमारे देश में आपसी परामर्श के आधार पर निर्णय लेने की परंपरा प्राचीन काल से ही रही है। यह कहा जाता है कि वैदिक काल के दौरान, जनता की सभाएं राजनीति पर विचार विमर्श, कानून के निर्माण तथा न्याय प्रदान करते हुए प्रशासन का कार्य संचालित करती थी। बुद्ध काल के शुरुआती वर्षों के दौरान जनसभाएं नियमित संस्थाएं हुआ करती थी। वे लोगों की शिकायतें सुनती थी और सर्वोच्च न्यायालय के रूप में याचिकाएं सुनती थी। मौजूदा काल की दसवीं और ग्यारहवीं सदियों की पुरातात्विक शिलालेखों से पता चलता है कि हमारे देश में सभा नामक संस्था अत्यंत उच्च कौशलयुक्त संस्था बन गई थी।
इसी तरह से, इस क्षेत्र की जनता ने भी अपनी-अपनी जनजातियों के प्रथागत तथा परंपरागत कानूनों के द्वारा खुद पर शासन किया है। बुलियांग, केबांग, मौचुक, जैसी संस्थाएं ऐसी लोकतांत्रिक संस्थाएं थीं जो लोगों की इच्छा तथा शक्ति की अभिव्यक्ति से अपना अधिकार प्राप्त करती थी। ये प्रणालियां अभी जारी हैं तथा आज भी प्रतिनिधात्मक लोकतंत्र की आधुनिक प्रणाली के साथ-साथ कार्यरत हैं। मुझे यह यह जानकर खुशी हुई कि केबांग तथा बुलियांग आदि जैसी परंपरागत परिषदों के नेता अपनी बैठकों के आरंभ में कहते हैं, ‘‘ग्रामवासियो और भाइयो, आइए हम अपने रीतिरिवाजों को तथा अपनी परिषद को मजबूत करें। हम अपने रिश्तों को बेहतर बनाएं, आइए हम कानूनों को सरल तथा सभी के लिए समान बनाएं, हमारे कानून एक समान हों, हमारे रीतिरिवाज सभी के लिए समान हों, हम सोच समझकर कार्य करें तथा यह देखें कि न्याय हो तथा इस तरह का समझौता हो कि वह दोनों पक्षा को स्वीकार्य हो। हम विवाद के शुरू में ही उस पर फैसला लें, कहीं ऐसा न हो कि छोटे-छोटे विवाद बढ़ जाएं तथा बहुत लम्बे समय तक चलते रहें। हम परिषद् की बैठक के लिए इकट्ठा हुए हैं तथा हम एकमत से अपनी राय रखें और अपना फैसला लें। आइए, हम फैसला लें और न्याय करें।’’ आज के विधायकों को जनजातीय नेताओं की इस बुद्धिमत्तापूर्ण सलाह पर ध्यान देना चाहिए।
भारत को आज एक सफल आधुनिक सांविधानिक संसदीय लोकतंत्र का आदर्श मॉडल माना जाता है। यह सच्चाई भी सभी जानते हैं कि हम एक ऐसे बहुलवादी और विविधतापूर्ण समाज में रहते हैं जो कि विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा है। जब हमने स्वतंत्र भारत के शासन के मॉडल के रूप में संसदीय लोकतंत्र का विकल्प अपनाया था तो विश्व हमें अविश्वास तथा संदेह की नजर से देख रहा था। परंतु हमने विनाश की भविष्यवाणी करने वालों को गलत सिद्ध कर दिखाया तथा अपनी अखंडता बनाए रखी, एक अत्यंत सफल लोकतंत्र को स्थापित किया तथा तीव्र आर्थिक प्रगति दर्ज की।
संसद और विधायिका वह आधारशिलाएं हैं जिन पर हमारी लोकतांत्रिक राजव्यवस्था का भवन खड़ा है। एक प्रतिनिधात्मक लोकतंत्र का एक बुनियादी लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होता है कि शासन का संचालन करते समय लोगों के हितों, उनकी जरूरतों तथा उनकी आकांक्षाओं का ध्यान रखा जाए। संसदीय लोकतंत्र में विधायिका जनता की संप्रभुतात्मक इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है।
मित्रो, जन प्रतिनिधि होना बड़े गौरव तथा सम्मान की बात है। परंतु इस सम्मान के साथ बड़ी जिम्मेदारी भी आती है। चुने गए प्रतिनिधियों को कई भूमिकाएं निभानी होती हैं तथा उनके सामने अपने दल, विधानसभा तथा अपने चुनाव क्षेत्र से बहुत सी मांगे होती हैं। एक विधायक के कार्य का समय सप्ताह के सातों दिन और चौबीसों घंटे का होता है। उन्हें जनता की समस्याओं के प्रति संवेदनशील तथा अनुक्रियाशील रहना होता है तथा उनकी शिकायतों को विधान सभा में उठाकर उनको स्वर प्रदान करना होता है। उन्हें जनता और सरकार के बीच कड़ी का कार्य करना चाहिए।
विधानसभा इस मायने में कार्यपालिका की स्वामी होती है कि मुख्यमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से तथा अलग-अलग विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं। कार्यपालिका को कभी भी राज्य विधान सभा में साधारण बहुमत के द्वारा ‘अविश्वास’ प्रस्ताव पारित करके अपदस्थ किया जा सकता है। इसके अलावा, शासन के अधिकांश दस्तावेज विधायिका द्वारा पारित समुचित कानूनों के द्वारा कार्यान्वित होते हैं। कार्यपालिका की विधायिका पर निर्भरता पूर्ण होती है तथा यह अत्यावश्यक है कि विधायक संविधान द्वारा उन्हें सौंपे गए इस महती कार्य के प्रति जिम्मेदार तथा अनुक्रियाशील हों।
चुने गए प्रतिनिधियों का धन तथा वित्त पर अनन्य नियंत्रण होता है। कार्यपालिका द्वारा कोई भी व्यय विधायिका के अनुमोदन बिना नहीं किया जा सकता, कोई भी कर विधायिक द्वारा पारित कानून के बिना नहीं वसूल किया जा सकता तथा राज्य की समेकित निधि से कोई भी धन बिना विधायिका के अनुमोदन के नहीं निकाला जा सकता। प्रशासन तथा कानून निर्माण की भारी जटिलताओं के चलते, विधायकों को कानून पारित करने से पहले समुचित परिचर्चा तथा जांच सुनिश्चित करनी चाहिए।
हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने एक ऐसे भारत का स्वप्न देखा था जिसमें राज्य के तीनों स्तंभ अर्थात् विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका तालमेल के साथ कार्य करते हुए इस तरह एक-दूसरे पर नियंत्रण एवं संतुलन रखें जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि इसके नागरिक एक स्वतंत्रतापूर्ण, न्यायपूर्ण तथा समानतापूर्ण परिवेश में विकास कर सकें। शक्तियों के इस पृथकीकरण में राज्य के किसी एक अंग में शक्तियों के संकेंद्रण से बचा गया है। इसके अलावा, भारत के संविधान में सरकार के दो स्तरों अर्थात् केंद्र और राज्य का भी पृथकीकरण रखा गया है और दोनों की कानून निर्माण की शक्तियों का संविधान में स्पष्ट उल्लेख किया गया है। पिछले कुछ दशकों ने यह दिखा दिया है कि हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने बुद्धिमत्ता से सही निर्णय लिया था और हमारे लोगों ने आलोचकों को गलत सिद्ध कर दिया है तथा हमारे उस लोकतंत्र को एक शानदार सफलता बना दिया है जो कि विश्व में सबसे बड़ा है।
अरुणाचल प्रदेश, भारत के पूर्वोत्तर भाग का एक अभिन्न और महत्त्वपूर्ण अंग है तथा भारत की लुक ईस्ट विदेश नीति का अहम् भागीदार है। भारत के दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के तथा पूर्व एशिया के अपने पड़ोसियों से बहुत पुराने सभ्यतागत रिश्ते रहे हैं। भारत का पूर्वोत्तर, भारत एवं दक्षिण पूर्व एशिया के बीच प्राकृतिक सेतु उपलब्ध कराता है। भारत की लुक ईस्ट नीति का बुनियादी दर्शन यह है कि भारत को, अपने एशियाई साझीदारों तथा शेष विश्व के साथ अधिकाधिक जुड़कर अपने भविष्य को साकार करने का प्रयास करना चाहिए। हम अपने पड़ोसियों को अपने विकास में साझीदार बनाना चाहते हैं। हम यह मानते हैं कि भारत के भविष्य तथा हमारे बेहतर आर्थिक हितों को एशिया के साथ प्रगाढ़ एकीकरण द्वारा अधिक लाभ प्राप्त होगा।
अब खोने के लिए समय नहीं बचा है। प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता तथा मानव संसाधनों की गुणवत्ता को देखते हुए, पूर्वोत्तर में भारत का एक महत्त्वपूर्ण निवेश गंतव्य तथा व्यवसाय और व्यापार का केंद्र बनने की क्षमता है। हमें उभरते एशिया से सामने आने वाले अवसरों तथा क्षेत्र के साथ भारत के बढ़ते आर्थिक एकीकरण से लाभ उठाना चाहिए। इस राज्य को अब दूरवर्ती नहीं माना जाना चाहिए। केंद्र तथा राज्य सरकार को मिलकर तेजी से अवसंरचनात्मक संयोजनों को तैयार करना चाहिए तथा अरुणाचल की विधायिका और जनता को इस कार्य में यथासंभव सहायता देनी चाहिए।
इस राज्य की लगभग 58000 मेगावाट की कुल जलविद्युत क्षमता है। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि 46000 मेगावाट के करीब की परियोजनाएं विभिन्न केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों तथा विभिन्न स्वतंत्र विद्युत उत्पादकों को विकास के लिए आबंटित की गई हैं, जिनमें से अधिकांश आबंटन राज्य सरकार के साथ संयुक्त सेक्टर की परियोजनाओं के विकास के लिए हैं। यह अब अरुणाचल प्रदेश की जनता और उसकी सरकार तथा केंद्र सरकार के लिए एक चुनौती है कि ये जलविद्युत परियोजनाएं समय पर चालू हों तथा अरुणाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में भारी उछाल आए और वह देश का सबसे धनवान राज्य बने। क्योंकि अरुणाचल प्रदेश की सीमाएं तीन देशों से मिलती हैं इसलिए सीमावर्ती इलाकों का विकास भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है और इस कार्य पर भी हमें अधिकतम ध्यान देना होगा।
एक उभरती वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारे प्रतिभावान, प्रगतिशील तथा कौशलपूर्ण युवा हैं। अरुणाचल प्रदेश के लोग सीखने में तेज, बदलाव के अनुकूल, प्रगतिशील नजरिए तथा प्रौद्योगिकी और ज्ञान प्राप्त करने के प्रति उत्सुक हैं। उन्हें अपनी-अपनी जन्मजात प्रतिभाओं को विकसित करने के लिए तथा न केवल राज्य के लिए वरन् देश और संपूर्ण मानवता के लिए योगदान के लिए हर अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि राज्य का राजनीतिक नेतृत्व इन चुनौतियों और अवसरों से अच्छी तरह वाकिफ है तथा वह अपनी जनता के लिए एक नये शांतिपूर्ण तथा समृद्धिपूर्ण युग की रचना के लिए ईमानदारी से प्रयास कर रहा है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो अरुणचल प्रदेश की राह रोक सके बशर्ते इसकी जनता तथा इसके नेतृत्व में इच्छा तथा दृढ़निश्चय हो।
मैं यहां उपस्थित आप सभी को तथा राज्य की सारी जनता को राज्य के लिए त्वरित और सतत् आर्थिक विकास प्राप्त करने के प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं। मैं अरुणाचल प्रदेश राज्य विधान सभा का आह्वान करता हूं कि वह लोकतांत्रिक परिपाटी के उच्चतम मानदंडों को बनाए रखे और स्वयं को पूर्णत: जनता की भलाई के लिए समर्पित करे।
अरुणाचल प्रदेश एक शोभायुक्त और सौंदर्ययुक्त राज्य और हमारे उन विभिन्न राज्यों के बीच एक चमकते हीरे के समान उभरे जिनसे मिलकर हमारे इस शानदार देश का निर्माण हुआ है।
धन्यवाद,
जय हिंद!