पी एन पानीकर विज्ञान विकास केंद्र द्वारा आयोजित 9वीं जन विज्ञान यात्रा के शुभारंभ के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
तिरुवंनतपुरम, केरल : 30.10.2012
मुझे, 9वीं पी एन पानीकर विज्ञान विकास यात्रा के शुभारंभ के लिए आप सबके बीच आकर बहुत खुशी हो रही है। जब मैंने पी एन पानीकर विज्ञान विकास केंद्र द्वारा केरल सरकार तथा अन्य एजेंसियों के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम के बारे में सुना तो मुझे
बहुत उत्सुकता महसूस हुई। मैं समझता हूं कि यह यात्रा केरल का एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसका लक्ष्य है गरीबी कम करने के लिए शिक्षा का प्रसार करना।
मैं इसे लोगों तक पहुंचने का ऐसा एक बहुत कारगर तरीका मानता हूं जो कि सफल तथा परिणामोन्मुख सिद्ध हो चुका है। इसे, सभी जगह युवाओं में पठन को बढ़ावा देने तथा पुस्तकों के प्रति प्रेम जगाने के एक सकेंद्रित जमीनी आंदोलन के रूप में देखा जा रहा है। मुझे इसकी सादगी देखकर तथा यह देखकर हैरानी हुई कि यह एक गांव के एक छोटे से कमरे से शुरू होकर जन साधारण का एक बड़ा आंदोलन बन गया, जिससे पता चलता है कि इस कार्यक्रम को उन लोगों द्वारा स्वीकार कर लिया गया है जिसके लिए यह शुरू किया गया था। उन्होंने न केवल इसको अपनाया बल्कि इसका पूरा लाभ भी उठाया है।
यह कोई हैरत की बात नहीं है कि जनता से संपर्क के इस कार्यक्रम ने ऐसे लोगों तक ज्ञान तथा सीखने के उपकरण पहुंचाकर, केरल के युवाओं में सीखने के प्रति ललक तथा वैज्ञानिक मनोवृत्ति का विकास किया है, जिनके पास ये साधन मौजूद नहीं थे।
आज, भारत सरकार का राष्ट्रीय साक्षरता मिशन श्री पी एन पानीकर के कार्यों और उनकी पद्धतियों से प्रेरणा प्राप्त करता है।
यह अवसर, साक्षरता आंदोलन के जनक श्री पी एन पानीकर को श्रद्धांजलि देने का भी अवसर है जिन्होंने अपना जीवन इस अत्यंत सफल साक्षरता अभियान को शुरू करने और उसके मार्गदर्शन के लिए समर्पित किया।
1945 में उन्होंने 47 ग्रामीण पुस्तकालयों को खोलकर त्रावणकोर पुस्तकालय एसोसियेशन की शुरुआत की थी, तब से उन्होंने ऐसी कितनी ही इकाइयां खोलीं और अब यह 6000 पुस्तकालयों का एक नेटवर्क और केरल में संपूर्ण साक्षरता का एक अत्यंत सफल आंदोलन बन चुका है।
श्री पी एन पानीकर ने एक सरल परंतु ताकतवर नारा दिया ‘वायिचु वालारुका’ जिसमें सभी बच्चों से पढ़ने और बढ़ने के आह्वान किया गया था।
हम जैसे कई लोगों की तरह ही, श्री पी एन पानीकर, गांधी जी के इन शब्दों से प्रेरित थे- ‘जन निरक्षरता भारत के लिए पाप तथा शर्म की बात है और इसे समाप्त करना होगा।’
गांधी जी के आदर्शों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के अनुरूप उन्होंने अपने कार्यक्रम में सामाजिक सौहार्द तथा भाईचारे के आंदोलन को भी शामिल किया।
मुझे यह उल्लेख करते हुए संतोष का अनुभव हो रहा है कि इस यात्रा का उद्देश्य है सहभागितापूर्ण लोकतंत्र, पंचायत केंद्रित विकास तथा ग्राम सभाओं के महत्त्व और उसकी सार्थकता के बारे में जागरूकता का पर चर्चा करना।
मैं समझता हूं कि यह यात्रा 30 दिनों में 2000 किमी. की दूरी पूरी करते हुए दौरान लगभग 30 लाख लोगों से संपर्क करेगी। इस यात्रा में भाग लेकर, इसके प्रतिभागी पी एन पानीकर का संदेश फैलाएंगे तथा इस राज्य में उनकी बहुमूल्य सेवाओं के प्रति जागरूकता लाएंगे।
मुझे यह उल्लेख करते हुए भी प्रसन्नता हो रही है कि इस यात्रा की एक निश्चित योजना है अर्थात उत्कृष्टता की छोटी यूनिटें खड़ी करना और उद्यमिता, बेहतर उत्पादकता तथा प्रतिस्पर्धात्मकता के द्वारा नवान्वेषण करना।
इस यात्रा ने किसानों, असंगठित श्रमिकों, अनुसूचित जाति और जनजाति तथा अन्य वंचित तबकों को अपना लक्ष्य समूह बनाया है। मैं समझता हूं कि इस यात्रा के प्रतिभागी जिन लोगों तक पहुंचेंगे उनसे प्रत्यक्षत: नुक्कड़ नाटकों के माध्यम संकल्पना प्रस्तुत करते हुए संपर्क करेंगे। मैं युवाओं अर्थात भावी नेतृत्व में रूचि पैदा करने तथा अपनी प्रगति में उनके अपने योगदान के बारे में सोचने पर कार्यक्रम केंद्रित करने के लिए उनकी प्रशंसा करता हूं।
मैं केरल सरकार को, महान दूरद्रष्टा, श्री पी एन पानीकर के निर्वाण दिवस 19 जून को ‘पठन दिवस’के रूप में मनाने के लिए बधाई देता हूं। इस अवसर पर सप्ताह भर सार्वजनिक कार्यक्रम तथा स्कूलों और शैक्षणिक संस्थान में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वास्तव में ‘ईश्वर के अपने देश’ में साक्षरता और शिक्षा के प्रति श्री पी एन पानीकर के योगदान को सम्मानित करने का इससे अच्छा तरीका और नहीं हो सकता।
इन्हीं शब्दों के साथ, मैं श्री पी एन पानीकर विज्ञान विकास यात्रा के प्रतिभागियों को शुभकामनाएं देता हूं और इस परियोजना में उनकी सफलता की कामना करता हूं।
मैं इसे लोगों तक पहुंचने का ऐसा एक बहुत कारगर तरीका मानता हूं जो कि सफल तथा परिणामोन्मुख सिद्ध हो चुका है। इसे, सभी जगह युवाओं में पठन को बढ़ावा देने तथा पुस्तकों के प्रति प्रेम जगाने के एक सकेंद्रित जमीनी आंदोलन के रूप में देखा जा रहा है। मुझे इसकी सादगी देखकर तथा यह देखकर हैरानी हुई कि यह एक गांव के एक छोटे से कमरे से शुरू होकर जन साधारण का एक बड़ा आंदोलन बन गया, जिससे पता चलता है कि इस कार्यक्रम को उन लोगों द्वारा स्वीकार कर लिया गया है जिसके लिए यह शुरू किया गया था। उन्होंने न केवल इसको अपनाया बल्कि इसका पूरा लाभ भी उठाया है।
यह कोई हैरत की बात नहीं है कि जनता से संपर्क के इस कार्यक्रम ने ऐसे लोगों तक ज्ञान तथा सीखने के उपकरण पहुंचाकर, केरल के युवाओं में सीखने के प्रति ललक तथा वैज्ञानिक मनोवृत्ति का विकास किया है, जिनके पास ये साधन मौजूद नहीं थे।
आज, भारत सरकार का राष्ट्रीय साक्षरता मिशन श्री पी एन पानीकर के कार्यों और उनकी पद्धतियों से प्रेरणा प्राप्त करता है।
यह अवसर, साक्षरता आंदोलन के जनक श्री पी एन पानीकर को श्रद्धांजलि देने का भी अवसर है जिन्होंने अपना जीवन इस अत्यंत सफल साक्षरता अभियान को शुरू करने और उसके मार्गदर्शन के लिए समर्पित किया।
1945 में उन्होंने 47 ग्रामीण पुस्तकालयों को खोलकर त्रावणकोर पुस्तकालय एसोसियेशन की शुरुआत की थी, तब से उन्होंने ऐसी कितनी ही इकाइयां खोलीं और अब यह 6000 पुस्तकालयों का एक नेटवर्क और केरल में संपूर्ण साक्षरता का एक अत्यंत सफल आंदोलन बन चुका है।
श्री पी एन पानीकर ने एक सरल परंतु ताकतवर नारा दिया ‘वायिचु वालारुका’ जिसमें सभी बच्चों से पढ़ने और बढ़ने के आह्वान किया गया था।
हम जैसे कई लोगों की तरह ही, श्री पी एन पानीकर, गांधी जी के इन शब्दों से प्रेरित थे- ‘जन निरक्षरता भारत के लिए पाप तथा शर्म की बात है और इसे समाप्त करना होगा।’
गांधी जी के आदर्शों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के अनुरूप उन्होंने अपने कार्यक्रम में सामाजिक सौहार्द तथा भाईचारे के आंदोलन को भी शामिल किया।
मुझे यह उल्लेख करते हुए संतोष का अनुभव हो रहा है कि इस यात्रा का उद्देश्य है सहभागितापूर्ण लोकतंत्र, पंचायत केंद्रित विकास तथा ग्राम सभाओं के महत्त्व और उसकी सार्थकता के बारे में जागरूकता का पर चर्चा करना।
मैं समझता हूं कि यह यात्रा 30 दिनों में 2000 किमी. की दूरी पूरी करते हुए दौरान लगभग 30 लाख लोगों से संपर्क करेगी। इस यात्रा में भाग लेकर, इसके प्रतिभागी पी एन पानीकर का संदेश फैलाएंगे तथा इस राज्य में उनकी बहुमूल्य सेवाओं के प्रति जागरूकता लाएंगे।
मुझे यह उल्लेख करते हुए भी प्रसन्नता हो रही है कि इस यात्रा की एक निश्चित योजना है अर्थात उत्कृष्टता की छोटी यूनिटें खड़ी करना और उद्यमिता, बेहतर उत्पादकता तथा प्रतिस्पर्धात्मकता के द्वारा नवान्वेषण करना।
इस यात्रा ने किसानों, असंगठित श्रमिकों, अनुसूचित जाति और जनजाति तथा अन्य वंचित तबकों को अपना लक्ष्य समूह बनाया है। मैं समझता हूं कि इस यात्रा के प्रतिभागी जिन लोगों तक पहुंचेंगे उनसे प्रत्यक्षत: नुक्कड़ नाटकों के माध्यम संकल्पना प्रस्तुत करते हुए संपर्क करेंगे। मैं युवाओं अर्थात भावी नेतृत्व में रूचि पैदा करने तथा अपनी प्रगति में उनके अपने योगदान के बारे में सोचने पर कार्यक्रम केंद्रित करने के लिए उनकी प्रशंसा करता हूं।
मैं केरल सरकार को, महान दूरद्रष्टा, श्री पी एन पानीकर के निर्वाण दिवस 19 जून को ‘पठन दिवस’के रूप में मनाने के लिए बधाई देता हूं। इस अवसर पर सप्ताह भर सार्वजनिक कार्यक्रम तथा स्कूलों और शैक्षणिक संस्थान में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वास्तव में ‘ईश्वर के अपने देश’ में साक्षरता और शिक्षा के प्रति श्री पी एन पानीकर के योगदान को सम्मानित करने का इससे अच्छा तरीका और नहीं हो सकता।
इन्हीं शब्दों के साथ, मैं श्री पी एन पानीकर विज्ञान विकास यात्रा के प्रतिभागियों को शुभकामनाएं देता हूं और इस परियोजना में उनकी सफलता की कामना करता हूं।